शिक्षा के बाजार बनने से बच्चों को क्या होगा फायदा?
Sachin Yadav New Delhi| Jan 01, 2013, 03:20AM IST
शिक्षा क्षेत्र में बदलाव
: शिक्षा के बदलते स्वरूप से कॉरपोरेट जगत को दिखने लगा है बड़ा बाजार
: कोचिंग सेंटर और स्कूल खोलकर अपने लाभ को दे दी है कमाने की दिशा
: प्राइमरी एजुकेशन के बाद अब उच्च शिक्षा में आना चाहते हैं कई बड़े घराने
सबसे बड़ी आवश्यकता
: स्कूलों में ली जाने वाली फीस की एक सीमा होनी चाहिए
: सुविधा के साथ क्लास रूम साइज के आधार पर तय हो फीस
शिक्षा के बदलते स्वरूप के चलते कॉरपोरेट जगत को शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बाजार दिखने लगा है। कॉरपोरेट सेक्टर ने कोचिंग से लेकर स्कूल तक खोलकर अपने लाभ को कमाने की दिशा दे दी है। कई बड़े घराने अब प्राइमरी एजुकेशन के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी आना चाहते हैं। जमीन की बढ़ती कीमतें कॉरपोरेट घरानों को अभी से ही इस सेक्टर को दबोचने के लिए प्रेरित कर रही हैं। अब शिक्षा को विभिन्न सेगमेंटों में बांट कर एजुकेशन बिजनेस शुरू किया जा रहा है।
प्ले स्कूल, किड्ज एजुकेशन, सेकेंडरी एजुकेशन, हायर एजुकेशन, कोचिंग बिजनेस, ई-ट्यूशन जैसे सेगमेंट में बच्चों को बांट दिया गया है। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक भारत का एजुकेशन सेक्टर आने वाले वर्षों में ५० अरब डॉलर का हो जाएगा। कई कॉरपोरेट घराने किड्ज स्कूल खोल रहे हैं, तो कुछ कोचिंग बिजनेस के बाद अब अपने स्कूल खोलने जा रहे हैं।
केंद्र सरकार द्वारा एजुकेशन सेक्टर के सभी क्षेत्रों में कुल खर्च को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के तीन फीसदी से बढ़ाकर पांच फीसदी किए जाने की योजना है। ऐसे में सभी कॉरपोरेट घराने इस सेक्टर में निवेश करने की योजना बना रहे हैं। ऑनलाइन एजुकेशन प्रदाता कंपनी मेरिटनेशन.कॉम के प्रबंध निदेशक और सह संस्थापक पवन चौहान ने बताया कि निजी क्षेत्र ने टेक्नोलॉजी में काफी प्रयोग किए हैं। इसका फायदा बच्चों का मिल रहा है।
पूर्वोत्तर भारत के इम्फाल में बैठकर कोई भी स्टूडेंट दिल्ली और मुंबई के कंटेंट का आसानी से उपयोग कर सकता है। हर स्टूडेंट की एक खास तरह की जरूरत होती है और टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम उस कंटेंट को बच्चे तक उपलब्ध करा रहे हैं। अगर स्टूडेंट के अभिभावक तकनीक के साथ-साथ बेस्ट एजुकेशन चाहते हैं तो उनके द्वारा किए गए निवेश पर उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली के मुताबिक निजी स्कूलों ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करने को लेकर और छठे वेतनमान आयोग का हवाला देकर फीस स्ट्रक्चर में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी है। कागजों पर ये निजी स्कूल अपने-आपको गैर लाभकारी सोसायटी और ट्रस्ट बताते है। वास्तविकता यह है कि ये सभी संस्थान खूब लाभ कमा रहे हैं जो कभी भी समाज के सामने नहीं आता है। ऐसे संस्थानों का मानना है कि शिक्षा अब निवेश की चीज है और जो इसमें निवेश कर रहे हैं, उन्हें लाभ कमाने का हक है। इस समय देश में १४-१८ वर्ष के बच्चों की संख्या ९.७ करोड़ है।
जबकि सिर्फ ४ करोड़ बच्चे ही १.६० लाख सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। ऐसे में अभी भी ५.७ करोड़ बच्चों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करना होगा। इसके लिए सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या दोगुनी करनी होगी। निश्चित तौर पर इतनी बड़ी संख्या में अकेले सरकार स्कूल नहीं खोल सकती है, ऐसे में निजी क्षेत्र की भी जरूरत पड़ेगी। ऐसे समय में जब जमीन की कीमतें आसमान को छू रही है, इसको लेकर निजी क्षेत्र में बड़ा कंपीटिशन रहेगा।
वह शुरुआत से ही लाभ कमाना चाहेंगे। सरकार को निजी स्कूलों व कंपनियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों में दखल नही देना चाहिए। आरटीई और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र के प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। मगर सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अपना सीमा रेखा का पालन करना होगा और एक-दूसरे के अधिकारों का उल्लघंन नहीं करना होगा। इससे दोनों के हित आपस में नहीं टकराएंगे।
बहरहाल सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि स्कूलों में ली जाने वाली फीस पर नियंत्रण किया जाए। स्कूलों में ली जाने वाली फीस की एक सीमा होनी चाहिए, साथ ही यह इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुविधा के साथ-साथ क्लास रूम साइज के आधार पर तय की जानी चाहिए। फीस की गणना करते समय आरटीई के नियमों को भी ध्यान में रखना होगा।
http://business.bhaskar.com/article/education-market-would-benefit-from-becoming-kids-4132688-NOR.html
: शिक्षा के बदलते स्वरूप से कॉरपोरेट जगत को दिखने लगा है बड़ा बाजार
: कोचिंग सेंटर और स्कूल खोलकर अपने लाभ को दे दी है कमाने की दिशा
: प्राइमरी एजुकेशन के बाद अब उच्च शिक्षा में आना चाहते हैं कई बड़े घराने
सबसे बड़ी आवश्यकता
: स्कूलों में ली जाने वाली फीस की एक सीमा होनी चाहिए
: सुविधा के साथ क्लास रूम साइज के आधार पर तय हो फीस
शिक्षा के बदलते स्वरूप के चलते कॉरपोरेट जगत को शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बाजार दिखने लगा है। कॉरपोरेट सेक्टर ने कोचिंग से लेकर स्कूल तक खोलकर अपने लाभ को कमाने की दिशा दे दी है। कई बड़े घराने अब प्राइमरी एजुकेशन के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी आना चाहते हैं। जमीन की बढ़ती कीमतें कॉरपोरेट घरानों को अभी से ही इस सेक्टर को दबोचने के लिए प्रेरित कर रही हैं। अब शिक्षा को विभिन्न सेगमेंटों में बांट कर एजुकेशन बिजनेस शुरू किया जा रहा है।
प्ले स्कूल, किड्ज एजुकेशन, सेकेंडरी एजुकेशन, हायर एजुकेशन, कोचिंग बिजनेस, ई-ट्यूशन जैसे सेगमेंट में बच्चों को बांट दिया गया है। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक भारत का एजुकेशन सेक्टर आने वाले वर्षों में ५० अरब डॉलर का हो जाएगा। कई कॉरपोरेट घराने किड्ज स्कूल खोल रहे हैं, तो कुछ कोचिंग बिजनेस के बाद अब अपने स्कूल खोलने जा रहे हैं।
केंद्र सरकार द्वारा एजुकेशन सेक्टर के सभी क्षेत्रों में कुल खर्च को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के तीन फीसदी से बढ़ाकर पांच फीसदी किए जाने की योजना है। ऐसे में सभी कॉरपोरेट घराने इस सेक्टर में निवेश करने की योजना बना रहे हैं। ऑनलाइन एजुकेशन प्रदाता कंपनी मेरिटनेशन.कॉम के प्रबंध निदेशक और सह संस्थापक पवन चौहान ने बताया कि निजी क्षेत्र ने टेक्नोलॉजी में काफी प्रयोग किए हैं। इसका फायदा बच्चों का मिल रहा है।
पूर्वोत्तर भारत के इम्फाल में बैठकर कोई भी स्टूडेंट दिल्ली और मुंबई के कंटेंट का आसानी से उपयोग कर सकता है। हर स्टूडेंट की एक खास तरह की जरूरत होती है और टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम उस कंटेंट को बच्चे तक उपलब्ध करा रहे हैं। अगर स्टूडेंट के अभिभावक तकनीक के साथ-साथ बेस्ट एजुकेशन चाहते हैं तो उनके द्वारा किए गए निवेश पर उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली के मुताबिक निजी स्कूलों ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करने को लेकर और छठे वेतनमान आयोग का हवाला देकर फीस स्ट्रक्चर में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी है। कागजों पर ये निजी स्कूल अपने-आपको गैर लाभकारी सोसायटी और ट्रस्ट बताते है। वास्तविकता यह है कि ये सभी संस्थान खूब लाभ कमा रहे हैं जो कभी भी समाज के सामने नहीं आता है। ऐसे संस्थानों का मानना है कि शिक्षा अब निवेश की चीज है और जो इसमें निवेश कर रहे हैं, उन्हें लाभ कमाने का हक है। इस समय देश में १४-१८ वर्ष के बच्चों की संख्या ९.७ करोड़ है।
जबकि सिर्फ ४ करोड़ बच्चे ही १.६० लाख सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। ऐसे में अभी भी ५.७ करोड़ बच्चों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करना होगा। इसके लिए सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या दोगुनी करनी होगी। निश्चित तौर पर इतनी बड़ी संख्या में अकेले सरकार स्कूल नहीं खोल सकती है, ऐसे में निजी क्षेत्र की भी जरूरत पड़ेगी। ऐसे समय में जब जमीन की कीमतें आसमान को छू रही है, इसको लेकर निजी क्षेत्र में बड़ा कंपीटिशन रहेगा।
वह शुरुआत से ही लाभ कमाना चाहेंगे। सरकार को निजी स्कूलों व कंपनियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों में दखल नही देना चाहिए। आरटीई और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र के प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। मगर सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अपना सीमा रेखा का पालन करना होगा और एक-दूसरे के अधिकारों का उल्लघंन नहीं करना होगा। इससे दोनों के हित आपस में नहीं टकराएंगे।
बहरहाल सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि स्कूलों में ली जाने वाली फीस पर नियंत्रण किया जाए। स्कूलों में ली जाने वाली फीस की एक सीमा होनी चाहिए, साथ ही यह इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुविधा के साथ-साथ क्लास रूम साइज के आधार पर तय की जानी चाहिए। फीस की गणना करते समय आरटीई के नियमों को भी ध्यान में रखना होगा।
http://business.bhaskar.com/article/education-market-would-benefit-from-becoming-kids-4132688-NOR.html