रविवार, 25 सितंबर 2011

अच्छा लगता है

बातों में उसकी खूबसूरती ढूंढता हूँ मैं
पल भी हसीं है और वो भी हसीं
उसका पास से गुज़र जाना
अच्छा लगता है
अपनी बातों में किसी तरह मेरा जिक्र आना
अच्छा लगता है
उससे नज़रे न मिला पाना
पास आते ही धड़कन का बढ़ जाना
अच्छा लगता है.
उसका एहसास उसकी बातों से करता हूँ
लेकिन अब उसकी आवाज़ सुने हुए अरसा बीत गया
फिर भी उसकी यादों को नज़रो मैं बसाता हूँ
अपना बीता हुआ कल सामने लाता हूँ
खुद पर हसी आती है
पर अच्छा लगता है.

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

और तू बिकना चाहती है

तुझे बाज़ार में सजाऊंगा, क्योंकि तू बिकती खूब है

तेरी तिजारत करने के लिए दुनिया को बुलाऊंगा

क्योंकि तू बिकती खूब है

तेरा रखवाला भी अब बस तेरी तिजारत करना चाहता है

कहता है तू सबके साथ घुल-मिल जाती है

कहता है तेरे चाहने वाले बहुत है,

इसलिए तिजारत भी अच्छी होगी

लेकिन तेरे बिकने से बाज़ार में

तेरी औकाद का पता नही चलता है

आज भी तू बिकाऊ है इसलिए तेरी पहचान

प्रेमिका नही किसी और की है

तेरे चाहने वाले सिर्फ तुझे बेचना जानते हैं

और तू बिकना चाहती है

यह कह कर बाज़ार में इतराती है

कि तेरी मांग है ज्यादा

हाँ मैं जानता हूँ की तू हिंदी हैं.

हिन्दी तू गई मेरें मन सें


हिन्दी तू गई मेरें मन सें

अब पूछती है क्यों

क्या बताऊं क्यों

तू जानना चाहती क्यों,

तो सुन

जब तुझे बोलता हूँ तो लोग तुच्छ समझते हैं

तेरी प्रतिद्वंदी भाषा को बोलता हूँ तो लोग उच्च समझते हैं

पैदा हुए नवजात शिशु से अब माँ नहीं मदर सुनना चाहते हैं

जो खुद नहीं कर पाए अब उससे करवाना चाहते हैं

तू सिर्फ़ लोगों का पेट भरती है

तू बालीवुड के संवादो में आती है

लोगों को जमीन से आसमान पर पहुँचाती है

उनकों स्टार बनाती है

उनकों करोड़ो रूपये कमवाती है

तू समाचार चैनलों पर चिल्लाई जाती है

समाचार पत्रों पर छापी जाती है

तू अब बाजार में बिकती है

क्योंकि तू विज्ञापन में चलती है

कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य

अब हिन्दी में नही रचे जाते हैं

क्योंकि जो हिन्दी में लिखते हैं

वही असभ्य समझे जाते हैं

बुकर, मैग्ससे, नोबेल की दौड़ से तू बहुत दूर नजर आती है

तू कोई अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार क्यों नहीं जीत पाती है

हर साल तेरें नाम पर विश्व हिन्दी सम्मेलन और पखवाड़े कराए जाते हैं

लाखों नहीं, करोड़ो लुटाए जाते हैं।

हे मेरी हिन्दी तेरी यही कहानी

तेंरी हालत देख मेरी आखों में आता है पानी

इसीलिए हिन्दी तू गई मेरे मन से

तू गई मेरे मन से

सोमवार, 3 जनवरी 2011

दस साल बाद भी नहीं शिफ्ट हो पाया केमिकल बाजार

दस साल बाद भी नहीं शिफ्ट हो पाया केमिकल बाजार
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
सचिन यादव नई दिल्ली
दस वर्षों बाद भी खारी बावली के तिलक बाजार स्थित केमिकल मार्केट को हरियाणा बार्डर से लगे होल्ंबीकलां में स्थानान्तिरत करने संबंधित हाईकोर्ट के आदेश का पालन दस वर्षों बाद भी नहीं किया गया है। तिलक बाजार के कैमिकल व्यापारी इसके लिए डीडीए और प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

कैमिकल मर्चेटंस एसोसिएशन के प्रधान सुशील गोयल ने बताया कि वर्ष २००० में हाईकोर्ट ने डीडीए को कैमिकल मर्चेंट वालों को हरियाणा बार्डर से लगे होल्मबी कलां में ५० वर्गमीटर जगह दी थी। उन्होंने बताया कि तिलक बाजार से यह जगह पूरी ३० किलोमीटर तक दूर है। सुशील ने कहा कि डीडीए ने प्लॉट लेने के लिए वर्ष २००२ में पैसे जमा करवाएं थे लेकिन जगह का न€शा अब वर्ष २०१० में दिया है। इसके बावजूद डीडीए ५३ तरह के एनओसी के कागज मांग रहा है।

उन्होंने बताया कि अभी तक हमें कब्जा नहीं मिला है और वहां प्लॉट नम्बर भी नहीं पड़े हैं। कारोबारियों के लिए वह जगह बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं है। सम्पर्क मार्केट तक सड़क से जाने का रास्ता तक नहीं है। के मिकल मर्चेटंस वालों को शिफ्ट करने से पहले अनिवार्य रूप से फॉयर बिग्रेड की स्थापना होनी चाहिए। इसके अलावा पोस्ट ऑफिस और बैंक की स्थापना होनी चाहिए। उन्होंने पूछा कि आखिर व्यापारी अपना व्यापार कैसे करेंगे।

सुशील ने कहा कि हमारी मांग है कि हमें ५० वर्गमीटर से बड़े प्लॉट दिए जाएं। खतरे की श्रेणी में आने वाले केमिकल को रखने के लिए इससे बड़े प्लॉट चाहिए। साथ ही श्रमिकों के रहने की भी कोई व्यवस्था की जाए। €योंकि इतनी दूर से श्रमिकों को अपने रहने के स्थान पर आने-जाने में ही काफी किराया खर्च करना होगा। कारोबारी अपने अनुभवी श्रमिकों को खोना नहीं चाहते हैं €योंकि उनकों केमिकल के काम की काफी अच्छी जानकारी है।

उन्होंने कहा कि हमारे ऑफिसों को तिलक बाजार में ही रहने दिया जाए। अगर डीडीए ने जोर जबरदस्ती करी तो अपने अधिकारों के लिए हम लड़ेंगे।