सोमवार, 29 जून 2009

"दिल्ली पर भारी- पानी की मारा मारी"

कहा जा रहा है कि तीसरा विश्व युद्घ पानी के लिए होगा. और इसका एहसास इस गर्मी में सभी भारत वाशियों ने कर भी लिया होगा. हाँ कुछ मुट्ठी भर लोग अभी भी इसको भयानक हालात नहीं मानते है. अभी में २७ जून को दिल्ली अपना भारतीय जनसंचार संस्थान का साछात्कार देने गया था. मैंने तो जेएनयू कैम्पस में रुका था. पर जब २८ तारीख का पेपर नवभारत टाईम्स पढ़ा, तो मेरे रोगंटे खड़े हो गए. नेहा लालचंदानी नाम कि रिपोर्टर ने पानी कि समस्या पर एक रिपोर्ट लिखी थी. जिसमे पानी कि खरीददारी देख कर दीमाग घूम गया. किस तरह से एक आदमी पानी के लिए ३०० रुपये देकर महीने भर का पानी खरीदता था. और उसको टेंकर में भर कर रखता था, और सिर्फ ६ लीटर पानी सप्ताह में अपने ऊपर खर्च करता था. और यहाँ लखनऊ में हम सिर्फ दिन भर में ६ लीटर पानी पी जाते हैं. पानी का आसामान्य वितरण भी एक मुख्या कारन है. फिर भी दिल्ली में भारतीय जनसंचार संस्थान के एक कर्मचारी की भूमिका पानी बचाने में बहुत महतवपूर्ण थी. वह कई बार संस्थान में घूमते थे और जहाँ कही भी पानी खुला मिलता था उससे बंद कर देते थे. वह वास्तव में एक सच्चे भारतीय है.
iimc mein likhi woh kuch is tarah thi
past is a waste paper
present is news paper
future is a question paper
and life is an answer paper, so carefully read and write. यह हमारे लिए कुछ ख़ास है

मंगलवार, 9 जून 2009

मेरा नाम पिंकू श्रीवास्तव है और आप


नमस्कार दोस्तों आज मैं आप को एक मित्र से मिलवाता हूँ , जो इंसान नहीं फिर भी इंसान से बढ़कर है. आज से दो साल पहले जब भारत ने अपना पहला ट्वेंटी ट्वेंटी वर्ल्ड कप जीता था . तब वह पहली बार मेरे सामने आया था. तब वह बहुत छोटा सा था . उसकी उम्र २ या तीन महीने ही होगी. जिसकी बात मैं कर रहा हूँ उनका नाम पिंकू श्रीवास्तव है और वह एक कुत्ता है. यह नाम रखने का एक कारन यह है की जो उस कुत्ते को घर लाये थे उनका नाम पिंकू श्रीवास्तव है और पहले उनके अंदर बहुत जोश था उसको पालने का, पर अचानक सारा जोश काफूर हो गया. और उन्होंने उसे सड़क पर आवारा कुत्ते की तरह छोड़ दिया. आज वह दो साल का चूका है. मुझे ख़राब यह लगा की उन्होंने किसी बच्चे को उसकी माँ से अलग किया और फिर उससे सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिया था. आज वह हमारी कालोनी में काफी मशहूर हो चूका है. क्योकि उसने कुछ दिन पहले ही हमारे घर के पास ही रहने वाले दुसरे श्रीवास्तव जी के घर होने वाली चोरी को रोका था और चोरो को भगा दिया था. आज भी वह अपनी इमानदारी और स्वामिभक्ति नहीं भूला है. और अपने पहले वाले मालिक के साथ मेरे और बाकि सभी के घरो की सुरक्षा करता हैं. उसके अन्दर किसी भी प्रकार का घमंड नही है. वह अब पूरी कालोनी में मशहूर हो चूका है. जो पिंकू श्रीवास्तव उसको लाये थे वह मेरे भैया लगते है. शायद उन्हें इस बात का अंदाजा तक नही है जब वह अपना घर छोड़ कर कही बहार जाते हैं तब वह लगातार उनके घर की सुरक्षा करता है. बस अपना फ़र्ज़ निभाता चला जा रहा है. मैंने बहुत पहले एक हॉलीवुड की फिल्म बीथोवेन देखि थी तब मुझे वह कुत्ता बहुत प्यारा लगा था, बस अब पूरी तरह से पिंकू श्रीवास्तव बीथोवेन की भूमिका निभा रहे है. और अब मुझे भी उससे प्यार हो गया है. जब हम घर पहुचते हैं तब पता नही कैसे पता चल जाता है और वह घर आ जाता है. जब सुबह मैं साइकिल से घर निकलता हूँ तब वह मुझे छोड़ने काफी दूर तक आता है. अब मेरे पापा कहते हैं, तुम इसको जयादा प्यार मत करो वरना जब इसको कुछ हो जायेगा. उस समय तुम्हे काफी पीडा होगी.
बस में यही दुआ करता हु भगवन उसे कोई दर्द न दे और उसे हमेशा ठीक रखे, तुम जियो हजारो साल, और तुम्हारी जैसी इमानदारी सभी को मिले.

गुरुवार, 4 जून 2009

बाप अंधरे में बेटा हो गया पॉवर हाउस

लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार डिपार्टमेन्ट का अब भगवान् ही मालिक है।करीब १८ वर्ष पहले शुरू हुआ यह विभाग अपने हाल पर रो रहा है। आज जिस डिपार्टमेन्ट को पूरे देश भर में अपना परचम फैलाना चाहिए, आज वही विभाग काफ़ी निचले निर्णय ले रहा है। सन २००५ में शुरू हुआ बी जे म सी कौर्से रोक दिया गया है । बचेलोर इन जौर्नाल्सिम एंड मॉस कम्युनिकेशन कौर्से आज भारत देश में अधिकतर यूनिवर्सिटी शुरू कर रही है ऐसे समय में डिपार्टमेन्ट ऑफ़ जौर्नालिस्म एंड मॉस कम्युनिकेशन लखनऊ यूनिवर्सिटी का यह फ़ैसला छात्रों के भविष्य से साफ़ साफ़ मजाक जान पड़ता है। अगर विभाग कहता है की उसके पास प्रोफ़ेसर, रीडर और स्पेसिअलिस्ट नही हैं, तोह यह पुरी तरह से बेमानी होगी। क्योकि जब विभाग ने २००५ में इस कौर्से को शुरू किया तब डिपार्टमेन्ट के पास सिर्फ़ एक परमानेंट फेकल्टी थी। जो की डॉ रमेश चंद्र त्रिपाठी जी थे। बाकी सब गेस्ट फेकल्टी थे। अब डिपार्टमेन्ट में डॉ मुकुल श्रीवास्तव के रूप में एक अन्य परमानेंट फेकल्टी भी विभाग में है। आख़िर क्यो यह कौर्से बंद किया गया इसका कोई जवाब अभी तक नही मिल पाया है। जबकि गोमती नगर में माडर्न कॉलेज इस बार भी बीजेमसी में दाखिले लेगा। यह कॉलेज सिर्फ़ लड़कियों के लिए है और सिर्फ़ उन्हें ही दाखिला मिल पायेगा। भविष्य में लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में भी सिर्फ़ माडर्न कॉलेज की लड़किया ही पढ़ पायेगी, क्योकि यहाँ मेरिट पर दाखिला होता है और माडर्न कॉलेज की लड़कियों के परसेंटेज भी ७० से ७८ तक होते है। यह कैसा नियम कानून है की जिस बाप ने बेटे को पैदा किया आज और पाला पोषा आज उस बाप की वाट लग गई है। पत्रकारिता विभाग में जिस तरह की राजनीती हो रही है , उससे एक तरफ़ जो छात्र पत्रकारिता में अपना भविष्य सर्च कर रहे थे , आज वोह लोग इस दोड़ से तरह अलग जान पड़ते है। दूसरी तरफ़ छोटे सहरो में किस तरह की पत्रकारिता होती होगी, उसका अंदाजा इससे ही लग जाता है। एक तरफ़ छात्र और छात्रा की बराबरी की वकालत की जाती है और दूसरी तरफ़ छात्रों को शूली पर लटकाने की तयारी की जा रही है। जो लोग छात्रों के भविष्य से खेल रहे हैं उन्हें जवाब देना होगा। और अब समय आ गया है की लखनऊ यूनिवर्सिटी अपना स्टैण्डर्ड भी चेक कर ले , क्योकि जिस कौर्से को वह पढ़ा रहे है वोह काफी पुराना हो गया है, अब बारी हैं कौर्से को अपडेट एंड नया करने की।