रविवार, 21 फ़रवरी 2010

संभल जाओ दोस्तों , क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है।

इतना सन्नाटा क्यों है भाई , शोले फिल्म का ये डॉयलाग आईआईएमसी में हिन्दी जर्नलिज्म के छात्रों के बीच के माहौल को बयां कर रहा था। लोगों के चेहरों पर हंसी तो थी मगर उस हंसी के पीछे छुपे गम को भी साफ देखा जा सकता था। क्लास से लेकर कैंटीन और लैब से लेकर जावेद की दुकान तक ,हर तरफ हवा में ख़ामोशी थी। ग्रुप मेल पर ब्रेकिंग न्यूज की तरह दिखने वाली सूचना को पढ़कर लोग फेसबुक और ऑरकुट का रास्ता भूल गए थे। वहीं बज़ की जगह लोगों के कान बज रहे थे। ग्रुप मेल पर आया संदेश अपने वॉयस ओवर में कह रहा था कि पीटीआई में चार का सलेक्शन,पीटीआई में चार का सलेक्शन । अब सिलसिला शुरू हो रहा था अपने सफल साथियों को बेमन से बधाई देने का । जो लोग आमने-सामने मिलकर बधाई नहीं देना चाहते थे तो उन्होंनें कम्पूयटर के की-बोर्ड पर उंगलियाँ खड़पड़ायी और ग्रुप मेल के माथे पर दे मारा बधाई हो । कुछ लोगों के चेहरे देखकर थ्री इडियट फिल्म का वो डायलॉग याद आ रहा था जिसमें हीरों कहता है कि अगर दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है लेकिन अगर टॉप कर जाए तो उससे भी ज्यादा दुख होता है। बहरहाल कैंपस में नजारें कुछ और भी थे । लोग ये भी कहते मिलें और अपने आप को कोस रहे थे कि काश कॉनवेंट स्कूल में पढ़े होते तो ये हाल न होता । एक तो नौकरी नहीं है ओर दूसरा नौकरी है तो पैसा नहीं। कुछ लोगों को इस बात का मलाल था कि उन्होनें पहली वरीयता पीटीआई को क्यों दी थी। करम फूटे पीटीआई के उन्होनें हमें नहीं चुना। हमेशा सज-धज के एकदम चकाचक निकलने वाले साहब का आज सिलवटों भरा कुर्ता मन कि निराशा को पढने के लिए काफी था .केन्टीन को चलने वाले महिपाल के सामने आज यक्ष प्रश्न ये था कि एच.जे वाले आज खाना क्यों नहीं खा रहे हैं ओर तिस पर से उधारी मांगने पर ये नाराजगी क्यों है . आज क्लास के ज्योतिषों कि पों -बारह थी वे हाथ कि रेखाओं को पढ़कर आने वाले प्लेसमेंट कि दशा ओर दिशा बता रहे थे .साथ ही कुछ लोगों का ये कहना कि हमने तो जानबूझकर उत्तर गलत लिखे थे ताकि इलेक्ट्रानिक मीडिया का गन माइक हमारे हाथ में आ सके ओर कह सकें कि मै 10 जनपथ से ...........। उतरे हुए चेहरों कि कतार यहीं नहीं थमती है दोस्तों कारवां अभी लम्बा है .गाहे बगाहे शायरियों से ग्रुप मेल पर जबाव देने वाले साहब भी आज बिन जबाव दिए लैब से चलते बने . जाने कि वजह पूछी तो कहने लगे कि यार आज तबियत कुछ ठीक नहीं है . आज कई प्रतिमान टूट रहे थे तो कई लोगों कि आस्था डगमगा रही थी कल तक जो किसी विशेष माध्यम में ही आपने को उपयुक्त मानते थे आज वे कहीं भी काम करने को तैयार हैं , 5 मिलें या 8 भाई हम तो चले जायेंगे . हालात ये थे कि लोग इंड़िया न्यूज को इंड़िया टीवी समझ रहे थे, अच्छा हुआ बात एनडीटीवी तक नहीं पहुँची। शाम ढलते-ढलते माहौल और ज्यादा उदासीन हो चला था क्लास में गहरी ख़ामोशी थी और सीट परे बिखरे अंग्रेजी अखबार के पन्ने अपनी अहमियत की कहानी खूब कह रहे थे- संभल जाओ दोस्तों , क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है। प्रस्तुति सचिन & परीक्षित

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

प्राण के 90वें जन्म दिन पर विशेष


किस्मत होती है कि नही, इस बारे में कहना संभव नही है लेकिन अगर आप पान खाते है , तो खाइए क्या पताआपकी किस्मत भी पान की दुकान खुल जाए। भारत में हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता प्राण कृष्ण सिकंद कीकिस्मत भी पान की दुकान पर पान खाते समय ही खुली थी। 12 फरवरी को पुरानी दिल्ली में जन्में प्राण आज 90वर्ष के हो गए।प्राण की किस्मत लाहौर की हीरा मंडी स्थित पान की दुकान पर लेखक और फिल्म निर्माता वली मुहम्मद वली केरूप में पीछे पड़ी। ये किस्मत कभी उनकों गालियों मे ढूंढती तो कभी सिनेमाहाल में मिल जाती । आखिरकार प्राणको पहली फिल्म यमला जट करनी पड़ी। ये फिल्म पंजाबी थी। प्राण को इस फिल्म में हास्यपद रोल था। प्राणको इस फिल्म में मेहनतानें को लेकर काफी कशमकश थी क्योंकि इस फिल्म को करने से पहले प्राण अपनेफोटोग्राफी के पेशे से 200 रू प्रतिमाह सन् 1940 के दौर में कमाते थे जबकि प्राण को इस फिल्म के लिए प्रतिमाह50 रूपये का मेहनताना मिल रहा था। वली मुहम्मद वली साहब ने प्राण के पान चबाने के स्टाइल और बोलतीआँखो को देखकर उनको ये रोल सौंपा था। इस तरह से प्राण फिल्मों के अपने सुहाने सफर पर निकल चुके थे।प्राण का विवाह 18 अप्रैल, 1945 में शुक्ला आहूवालिया से हुआ।प्राण की कई व्याक्तिगत चीजों को भी फिल्म निर्देशकों ने शमिल किया। प्राण अपनी सिगरेट के धुएं से गोल-गोलछल्ले बनाने में माहिर थे जब फिल्म निर्माता को उनके इस हुनर के बारें में पता चला तो उन्होनें प्राण की इण्ट्रीअपनी फिल्म में उनकों न दिखाकर नहीं बल्कि फिल्म की हीरोइन पर पड़ने वाले सिगरेट के छल्ले से कैमरा शुरूकर बाद पर प्राण पर क्लोअप शाॅट के साथ रूकता है।प्राण ने शीश महल, आन-बान, हलाकू, व राजतिलक जैसी काॅस्ट्यूम ड्रामा फिल्में भी की। साथ ही कुछ परीकथाओंमें भी हाथ आजमाया जैसे सिंदबाद-द सेलर , अलिफ लैला , डाॅटर आॅफ सिंदबाद। प्राण के रिश्ते देव आंनद ,राजकपूर , दिलीप कुमार से अच्छे सम्बन्ध भी है। प्राण ने देवानंद के साथ पहली बार जिद्दी फिल्म में काम किया।इस फिल्म ने प्राण हिंदी सिनेमा में चल रहे खराब वक्त को भी दूर किया। इस फिल्म में प्राण को अच्छी हिंदीबोलने का अभ्यास खूद देवानंद साहब ने कराया था। प्राण ने तीनों के साथ काम किया था लेकिन एक बात रोचकहै कि देवानंद , दिलीप कुमार और राजकपूर क तिकड़ी ने कभी साथ काम नही किया था। प्राण हीरा- रांझााफिल्म से भी जुडे़ रहे। इस फिल्म की खासियत थी िकइस फिल्म के सारे संवाद तुकबंदी में थे, जिन्हें कैफीआजमी साहब ने लिखा था। फिल्म शहीद में केहर सिंह और उपकार में मंलग चाचा की भूमिका उनके कॅरियर काएक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई।हिन्दी फिल्मों में अपनी किस्मत के राजा प्राण को हिन्दी फिल्मों के शंहशाह अमिताभ बचपन को बुलंदियों का रास्तादिखाने में प्राण की अहम भूमिका थी। अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि उनकी सिफारिश से उन्हें जं़जीर फिल्ममें लिया गया था। अमिताभ और प्राण साहब ने इसके बाद अमर, अकबर, एंथोनी, कसौटी, मजबूर, , उाॅन, कालिया,नसीब, नास्तिक , शराबी, अंधा कानून , इनक़लाब आदि फिल्में की।प्राण अन्याय के खिलाफ भी खड़े हो जाते थे उन्होनें 1973 में फिल्म फेयर अवार्ड कमेटी को पत्र लिख कर कहाकि श्रेष्ठ संगीतकार का अवार्ड पाकीजा फिल्म के लिए गुलाम मोहम्मद को न मिलने पर रोष व्यक्त किया। उन्होनेंअपने जीवन में 346 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी फिल्म वसन्त सेना , लालकिला ,ताला चाबी पूरी नहींहो पायी। उन्हें जब 2000 में सहस्रसाब्दि का खलनायक अवार्ड स्टारडस्ट ने दिया तो उन्होनें अपने जीवन भर काइसे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अवार्ड बताया। प्राण साहब किस्मत को बखूबी मानते थे। इसलिए उन्होनें कहा किखुदा तौफ़ीक देता है जिन्हें, वो ये समझते हैंके खुद अपने ही हाथो से बना करती हैं तक़दीरें।।

सचिन यादव