मंगलवार, 25 मई 2010

कागज की खपत में बढ़ोतरी

सचिन यादव नई दिल्लीचावड़ी बाजार स्थित एशिया का सबसे बड़ा कागज बाजार आर्थिक मंदी के खराब दौर से उबर आया है। आजकल बाजार में २० फीसदी से अधिक की तेजी दिखाई पड़ रही है जोकि आने वाले ५ से ६ महीनों तक लगातार जारी रहने की संभावना है। साथ की रिकवर्ड पेपर के कारोबार में भी तेजी आई है। इस समय अरब देशों के साथ-साथ पड़ोसी देश श्रीलंका को भी कागज का निर्यात किया जा रहा है।पेपर मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव पदम चंद जैन कहते हैं कि पेपर के कारोबार में तेजी का एक प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग भी है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण लोगों ने पॉलीथीन को प्रयोग करना कम किया है। आज लोगों में जागरूकता के कारण इको फे्रंडली बैग का प्रयोग करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। इसलिए व्यापरियों ने भी इको फें्र डली बैग के उत्पादन को बढ़ाया है।पदम चंद कहते हैं कि २००८ में भारत में ९ मिलियन टन कागज का उत्पादन हुआ था जबकि उसी वर्ष १०।२ मिलियन टन कागज का उपभोग लोगों की जरूरतों को पूरा करने में खर्च हो गया ,जिसके लिए बाकी कागज आयात किया गया था। भारत में पेपर का उपभोग बढ़ता जा रहा है। २००८ के ९ मिलियन टन से बढ़कर २०२० में कागज का उत्पादन १८.५ मिलियन टन पहुंच जाने की संभावना है।सबसे अधिक पेपर मैगजीन, पोस्टर और कलेण्डर बनाने में खर्च होता है। भारत में पैकजिग में ४.५ मिलियन टन कागज, न्यूज प्रिंट में १.७ मिलियन टन , प्रिटिंग एंड राइटिंग में ३.६ मिलियन टन कागज की खपत हो जाती है। जोकि लगातार बढ़ती ही जा रही है। उन्होंने साफ किया बाजार में महंगाई है फिर भी कागज की खपत लगातार बढ़ती जा रही है।रिकवर्ड पेपर के विषय में पदम चंद कहते हैं कि भारत में सबसे अधिक रिकवर्ड पेपर का आयात अमेरिका से किया जाता है। भारत अमेरिका से ३४ प्रतिशत से अधिक रिकवर्ड कागज का आयात करता है। जबकि ६६ फीसदी से अधिक रिकवर्ड कागज यूएई, यूके, और यूरोप से आयात किया जाता है।पदम चंद जैन कहते है कि चावड़ी बाजार पेपर का मुख्यत वितरण केन्द्र है। यहां पर पेपर टेड्रर्स की १३५० से अधिक दुकानें हैं और सालाना करीब २५०० करोड़ से अधिक का कारोबार हो जाता है। गौरतलब है कि एशिया की सबसे बड़ी कागज वितरण बाजार से प्रत्यक्ष रूप से १० हजार से भी अधिक परिवार जुड़े हुए हैं।

धंधा है पर मंदा है ये

सचिन यादव नई दिल्ली
चावड़ी बाजार स्थित कागज के व्यापरियों में जहां खुशी का माहौल है वहीं दूसरी ओर ग्रीटिंग कार्ड का व्यापार करने वाले व्यापरियों का धंधा काफी मंदा चल रहा है। नए टेक्रोलाजी और मोबाइल क्रांति ने पूरी तरह से लोगों को अपना दिवाना बना लिया है जिससे ग्रीटिंग कार्ड की तरफ किसी का ध्यान भी नहीं है। ग्रीटिंग कार्ड का कारोबार करने वाले रंजन कहते हैं कि अब कौन कार्ड खरीदना चाहता है, लोग अपनी उंगलियों को मोबाइल या कंप्यूटर में खटपटा कर और थोड़ा सा कष्ट देकर कुछ ही समय में लोग अपनों से बातें कर रहे हैं। आखिर कौन ऐसे में धूप में बाजार आएगा, कौन ग्रीटिंग कार्ड का पोस्ट करने के झंझट में पड़ेगा। व्यापारी लक्ष्मी जैन कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि लोग ग्रीटिंग कार्ड खरीद नहीं रहे हैं लेकिन आजकल लोगों को ब्रांड पंसद आता है। इसलिए लोग ग्रीटिंग कार्ड की खरीदारी कर भी रहे हैं तो पहले उसकी कंपनी देख रहे हैं। व्यापारी सुंदर लाल कहते हैं कि ग्रीटिंग कार्ड के कारोबार में इतनी गिरावट है कि पिछले कई सालों से ही कार्डों के उत्पादन को कम कर दिया गया है।मॉडल टाउन के निवासी तरुण चौहान कहते हैं कि कार्ड लाओ, फिर चिपकाओ, पोस्ट आफिस जाओ, लाइन लगाओ और घंटों के बाद एक कार्ड पोस्ट करने के झंझट में अब कौन पडऩा चाहेगा। जब मोबाइल और ईमेल है तो कौन इस मुसीबत में पड़े। मीडियाकर्मी सिम्पल कहती हैं कि हमारा इतना बड़ा नेटवर्क है और सभी को कार्ड भेजना संभव नही है। जबकि मोबाइल और ईमेल से एक बार में एक निश्चित संख्या में लोगों को अपनी कोई भी बात पहुचाई जा सकती है। आप पैसे के साथ-साथ अपना बेशकीमती समय भी बचा सकते हैं।

शनिवार, 22 मई 2010

डेनिम की बढती मांग

सचिन यादव बिजनेस भास्कर नई दिल्लीडेनिम की मांग से टैंक रोड स्थित डेनिम का थोक कपड़ा बाजार गर्मी के मौसम गुलजार है। ग्राहकों के लगातार बढ़ती खरीदारी करने से डेनिम के व्यापरियों में भी काफी उत्साह है। युवाओं का फैशन को लेकर किए जाने वाले नए प्रयोग और डेनिम के प्रति बढ़ती चाहत ने डेनिम के कारोबार में इस मौसम में भी जान फंूक दी है। भारत में ९० फीसदी से अधिक डेनिम की खरीदारी अंसगठित क्षेत्र से होती हैं और ब्रांडेड कंपनियों को ये सेक्टर काफी अधिक टक्कर दे रहा है। लोगों में टैंक रोड स्थित मार्केट के प्रति लगाव बढऩे का एक कारण सस्ते दामों पर अच्छी और टिकाऊ जींस का मिलना है। क्योंकि २५० से ३०० रूपये में अच्छी जींस मिल जाती है। शादीपुर से जींस की खरीदारी करनें आए आईटी प्रोफेशनल रवि कुमार बताते हैं कि इतने कम दामों में तो आज पैंट का कपड़ा भी नहीं मिलता है जबकि कई दूसरी डेनिम की जींस देने वाली कंपनियां सिर्फ टैग लगाकर ऐसे ही डेनिम जींस प्रति पीस हजार या उससे भी अधिक के दामों पर बैच रही हैं। गर्मी की छुट्टी में अपनी पॉकेट मनी बचाकर खरीदारी करनें आई बारहवीं की छात्रा मीनाक्षी इस मार्केट को अपनें बजट के हिसाब से फिट मानती हैं और कहती हैं कि यहां अब लड़कियों के लिए डेनिम की जींस की वैरायटी बहुत अधिक मात्रा में आ गई है। अब अपनें बजट के हिसाब और अपनी पंसद की जींस खरीदने में मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है।डेनिम व्यवसायी अंकुल भल्ला बताते हैं कि पिछले साल तक गर्मी में यहां ग्राहकों की काफी कमी थी और हम लोग जल्द से जल्द शादी-ब्याह और जाड़े के मौसम का इंतजार करते थे। लेकिन इस बार उम्मीद के उलट सारे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। साथ ही इस गर्मी के साथ इस महंगाई के मौसम भी लोग खरीदारी करने आ रहे हैं। डेनिम का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट का कारोबार करने वाले अजीत सिंह दूसरे राज्यों से व्यापरियों के इस मौसम में आने से काफी खुश हैं। अजीत कहते हैं कि गर्मी के मौसम में मुख्यत लोग व्यापार के लिए नहीं आते हैं। लेकिन इस बार व्यापरियों के आने से सभी व्यापरियों में काफी उत्साह है।