गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

जिन्दगी मेरी छोटी सी मोतियों की माला टूट गई....

ये जिस्म सुन सा पड़ गया
आखों में अँधेरा छा ही गया
कुछ घुटन सी अन्दर बाकी है
मन घबराया ज्यादा आज ही है.
शब्द बहुत से हैं मेरे
पर बोल नहीं पाती आज हूँ मैं
कैसे कहूँ, और किससे कहूँ
ये पीड़ा दर्द भयानक सी
जिन्दगी छोटी मेरी सी
ये मोतियों की माला टूट गई
खूब मेहनत से बनाई थी माला
खूब ख्वाब सजोयें थे मैंने
अब कौन खोजेगा बिखरे मोतियों  को
और कौन बनाएगा माला
जिन्दगी मेरी छोटी सी
मोतियों की माला टूट गई....