शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

Pran and Dada Saheb Falke Award...

"खुदा तौफ़ीक देता है जिन्हें वो ये समझते हैं,
कि खुद अपने ही हाथो से बना करती हैं तक़दीरें"




किस्मत होती है कि नही, इस बारे में कहना मुश्किल है. लेकिन अगर आप पान खाते है तो खाइए. क्या पता आपकी किस्मत भी पान की दुकान खुल जाए. यह वाकया कभी भारत में हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता प्राण कृष्ण सिकंद के साथ भी हो चुका है। जी हां हिंदी फिल्मों के खलनयानक की किस्मत भी पान की दुकान पर पान खाते समय ही खुली थी। 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली में जन्में प्राण 93 वर्ष के हो चुके हैं। कहते हैं कि किस्मत कभी-कभी आपकों ढूंढ रही होती है। कुछ ऐसा ही प्राण के साथ भी हुआ था। प्राण की किस्मत लाहौर की हीरा मंडी स्थित पान की दुकान पर लेखक और फिल्म निर्माता वली मुहम्मद वली के रूप में पीछे पड़ी। ये किस्मत कभी उनकों गालियों मिलती तो कभी सिनेमाहाल में टकरा जाती ।

किस्मत कहें या फिर प्राण की मर्जी, आखिरकार प्राण को पहली फिल्म यमला जट करनी पड़ी। ये फिल्म पंजाबी थी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खलनायकों के बेहतरीन किरदारों को निभाने वाले मशहूर प्राण को अपनी पहली फिल्म में हास्यपद रोल करना पड़ा था। प्राण को इस फिल्म में मेहनतानें के रूप में मिलने वाले रुपयों को लेकर काफी कशमकश थी क्योंकि इस फिल्म को करने से पहले प्राण अपने फोटोग्राफी के पेशे से 200 रू प्रतिमाह कमा रहे थे, वो भी वर्ष 1940 के दौर में। जबकि प्राण को इस फिल्म के लिए प्रतिमाह 50 रूपये का मेहनताना मिल रहा था। वली मुहम्मद वली साहब ने प्राण के पान चबाने के स्टाइल और बोलती आँखो को देखकर उनको यह रोल सौंपा था। अपनी पहली फिल्म यमला जट के जरिए प्राण ने फिल्मों का सुहाना सफर शुरू किया। प्राण का विवाह 18 अप्रैल, 1945 में शुक्ला आहूवालिया से हुआ।

प्राण की जिदंगी की कई व्यक्तिगत चीजों से फिल्म निर्देशक काफी प्रभावित होते थे। प्राण की कई व्याक्तिगत चीजों को भी फिल्म निर्देशकों ने शमिल किया। प्राण की सिगरेट पीने की बुरी आदत को भी निर्देशकों ने कुछ अनोखे अदांज में शूट किया। प्राण अपनी सिगरेट के धुएं से गोल-गोल छल्ले बनाने में माहिर थे जब फिल्म निर्देशक को उनके इस हुनर के बारें में पता चला तो उन्होनें प्राण की इण्ट्री अपनी फिल्म में उनकों न दिखाकर फिल्म की हीरोइन पर पडऩे वाले सिगरेट के छल्ले से कैमरा शुरू कर बाद में प्राण पर क्लोज अप शॉट के जरिए फिल्माया जाता था। प्राण ने शीश महल, आन-बान, हलाकू और राजतिलक जैसी कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में भी की। साथ ही कुछ परीकथाओं में भी हाथ आजमाया जैसे सिंदबाद-द सेलर , अलिफ लैला , डॉटर ऑफ सिंदबाद। प्राण के रिश्ते देवआंनद ,राजकपूर , दिलीप कुमार से अच्छे सम्बन्ध भी थे । प्राण ने देवानंद के साथ पहली बार जिद्दी फिल्म में काम किया। इस फिल्म ने प्राण हिंदी सिनेमा में चल रहे खराब वक्त को भी दूर किया। इस फि ल्म में प्राण को अच्छी हिंदी बोलने का अभ्यास खुद देवानंद साहब ने कराया था। प्राण ने तीनों के साथ काम किया था लेकिन एक बात रोचक है कि देवानंद , दिलीप कुमार और राजकपूर की तिकड़ी ने कभी साथ काम नही किया था। प्राण हीर-रांझा फिल्म से भी जुड़े रहे। इस फिल्म की खासियत थी कि इस फि ल्म के सारे संवाद तुकबंदी में थे, जिन्हें कैफ़ी आजमी साहब ने लिखा था। फिल्म शहीद में केहर सिंह और उपकार में मलंग चाचा की भूमिका उनके कॅरियर काएक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई।

हिन्दी फिल्मों में अपनी किस्मत के राजा प्राण को हिन्दी फिल्मों के शंहशाह अमिताभ बचपन को बुलंदियों का रास्ता दिखाने में प्राण की अहम भूमिका थी। अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि उनकी सिफारिश से उन्हें जंज़ीर फि ल्म में लिया गया था। अमिताभ और प्राण साहब ने इसके बाद अमर, अकबर, एंथोनी, कसौटी, मजबूर, , डॉन, कालिया, नसीब, नास्तिक , शराबी, अंधा कानून , इनक़लाब आदि फिल्में की। प्राण अन्याय के खिलाफ भी खड़े हो जाते थे। उन्होनें 1973 में फिल्म फेयर अवार्ड कमेटी को पत्र लिख श्रेष्ठ संगीतकार का अवार्ड पाकीजा फिल्म के लिए गुलाम मोहम्मद को न मिलने पर रोष व्यक्त किया। उन्होंने अपने जीवन में 346 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी फिल्म वसन्त सेना , लालकिला , ताला चाबी पूरी नहीं हो पायी। उन्हें जब 2000 में सहस्रसाब्दि का खलनायक अवार्ड स्टारडस्ट ने दिया तो उन्होनें अपने जीवन भर का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अवार्ड बताया। प्राण साहब किस्मत को बखूबी मानते थे। इसलिए उन्होनें कहा कि "खुदा तौफ़ीक देता है जिन्हें वो ये समझते हैं, कि खुद अपने ही हाथो से बना करती हैं तक़दीरें"।।

पुराना लेख है, पर समसायिक है। वर्ष २ ० १ ० में लिखा था, एक बार फिर से आप से शेयर कर रहा हूँ .
By- Sachin Yadav