सुबह-सुबह मॉनसून गुस्से में पैर पटकते हुए मेरे
सामने आकर खड़ा हो गया और बोला ये म से मनमोहन को क्या हो गया है जो म से
मुझे मुजरिम ठहरा रहे हैं. आखिर क्या मैनें म से महंगाई को कम करने का ठेका
ले रखा है। जाओ अभी और मनमोहन से कह दो महंगाई को सिर्फ मॉनसून से मत
जोड़े नहीं तो मैं म से शुरू होने वाली सारी गालियों की बौछार उनके साथ-साथ
पूरे म से मंत्रिमंडल पर कर दूंगा।
मैनें मॉनसून से कहा कि अरे यार
तुम नाराज मत हो, शायद मनमोहन जी होश में नहीं होंगे, इसलिए तुमको महंगाई
के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया होगा।
मॉनसून बोला अमा यार तुम भी बड़े
बेवकूफ हो, स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले की प्राचीर से वो मुझे दोषी
ठहरा रहे थे और तो और कुछ अखबारों ने भी मुझे ही दोषी ठहरा दिया है। उनकी
इतनी हिम्मत कैसी हो गई की मुझे दोषी ठहराएं। मॉनसून बोला यार देश की दशा
और दिशा तो तुम्हें अच्छी तरह से पता है, पर्यावरण के बारें में केवल
ख्याली पुलाव पकाए जाते है, कानून तो हैं पर उनका पालन नहीं होता है। काहें
में समय से आऊं, क्या इस देश में सारा काम समय से हो रहा है. मैं कोई फीस
लेता हूं तुम लोगों से. तुम हर चीज को खरीदना जानते हो, पर हर जीच खरीदी
नहीं जा सकती है. अगर तीन-चार साल घर पर बैठ कर मैं भी मजे लेने लगा न तो
पता चल जाएगा तुम्हारे मनमोहन समेत बाकीयों को भी.