मंगलवार, 14 अगस्त 2012

कल पंद्रह अगस्त है हमारी आजादी का दिन

पीठ पर उसकी कम से कम सात किलो का स्कूली बैग था... वह तेजी से दौड़ते- हांफते हुए घर में घुसा, मम्मी जल्दी से मेरे कपड़े धो दो और जूते भी साफ कर दो. कल मुझे स्टेज पर जाकर तिरंगा फहराना है और राष्ट्र गान भी गाना है. अपना बैग बिस्तर पर पटकते हुए शीशे के सामने एकदम सावधान की मुद्रा में खड़े होकर जन-गण-गन गाने लगा. मम्मी ने कहा अच्छा ठीक है पहले ये नौटंकी छोड़ और खाना खा ले. उसने गुस्साते हुए कहा कि मम्ी ये नौंटकी नहीं है, कल पंद्रह अगस्त है हमारी आजादी का दिन. मम्मी ने कहा हां बहुत जानती हूं आजादी का दिन पिछले कई सालों से देख रही हूं, इस आजादी के दिन को, मन ही मन कुछ बुदबुंदाते हुए , चल तू अभी नहीं समझेगा, समय तुझको समझा देगा. मम्मी ने कहा ठीक है धो दूंगी, चल पहले मुंह-हाथ धो और खाना खा लो. वो पिछले एक साल से इस दिन  का इंतजार कर रहा था कि इस बार स्टेज पर जाकर वहीं तिरंगा पहराएगा, इसके लिए वो हर दिन स्कूल गया था, सारे अनुशासन का पालन किया था, यहां तक की अपने दोस्तो से भी लड़ाई करी थी. वो दोस्तों की अटेंडेंस नहीं लगाया करता था. दोस्त कहते अबे क्लॉस के मॉनीटर हो, गवर्नर नहीं. वह कुछ नहीं कहता और अपना काम कर देता... कुछ देर बाद उसकी मम्मी ने उसे खाना ला कर दे दिया और वो खाना- खाने लगा. थोड़ी देर में ही मकान मालिक किराए के तकादे के लिए आ गया और चिल्लाने लगा पिछले तीन महीने से किराया नहीं दिया और अगर इस बार किराया न दिया तो घर खाली कर देना. उसकी मम्मी रिकवेस्ट करते हुए कहती हैं भाई साहब चिल्लाइए नहीं इस महीने आप का किराया मिल जाएगा. वो खाना खाते हुए सब सुन रहा था. मकान मालिक जा चुका था उसकी मम्मी ने कहा कि तू खाना खा के सो जाना, मैं बाहर से ताला लगाकर जा रही हंूँ उसकी मां ने बैग उठाया और दरवाजे-दरवाजे कॉस्मिेटिक का सामान बेचने निकल पड़ी. शाम को उसकी मम्मी को लौटते-लौटते सात बज चुका था. जब वह घर लौटी तो लाइट नहीं आ रही थी और वो तेज आवाज में मोमबत्ती जलाकर शीशे के  सामने जन-गण-मन गाए जा रहा था। लाइट को गए पांच घंटे बीत चुके थे और घर में पीने का पानी भी बस बाल्टी भर ही बचा था. मम्मी ने पूछा तुमने दूध पी लिया. उसने कहा हां दूध पी लिया वो भी बिना चीनी के. उसने मम्मी से पूछा, मेरे कपड़े और जूते कैसे साफ होंगे. लाइट तो आ नहीं रही है. मम्मी ने कहा कि तू चिंता मत कर सुबह तूझे तेरे कपड़े और जूते साफ मिलेंगे. धीरे-धीरेे समय बीतता गया और रात के बारह बज गए. अब उसकी मम्मी को भी डर सातने लगा था कि अगर लाइट नहीं आई तो क्या होगा. रात में एक बजे लाइट आई लेकिन पानी नहीं आया. रात में एक बजे उसकी मम्मी घर से १०० मीटर की दूरी पर लगे हैंडपंप पर गई और उसके कपड़े धोने शुरू किए. डर भी लग रहा था कि इतनी रात में कोई घटना न घटे, पर उसकी मम्मी को तो सिर्फ उसका चेहरा ही दिखाई दे रहा था. जूतो को ब्रश से बाहर से साफ किया और कपड़ो को तबतक निचौड़ा. जब तक कि कपड़ों से पानी की एक-एक बूंद न  निकल गई. कपड़े धोते-धोते उसे तीन बज गए थे. घर वापस लौट कर आई तो सोचा कपड़ों को पे्रस कर दिया जाए जिससे सुबह उठकर वह अपने कपड़े और जूते देख कर खुश हो जाएं. मम्मी की नींद उसके मुस्कुराते चेहरे को देख कर जाती रही. मम्मी ने कपड़े प्रेस करने के लिए आयरन को लगाया तो वह नहीं हो रहा था, फिर वह एक बार परेशान हो उठी आखिर चार घंटे में उसके कपड़े कैसे सूखेंगे और कपड़े प्रेस न हुए तो वो परेशान हो जाएगा और उसका सपना हकीकत नहीं बन पाएगा. मम्मी के दिमाग में कुछ नही आया तो किचन में गई और खाली बर्तन को गैस पर गर्म करके कपड़े प्रेस करने लगी. कपड़ो की सिकुडऩ हटाते-हटाते काफी समय बीत गया था। फिर भी कपड़ों पर कुछ सिकुडऩ बाकी थी।
सुबह छह बजे मम्मी ने उसे उठा दिया था और कहा चल नहा के तैयार हो जा, सात बजे से पहले स्कूल पहुंचना है कि नहीं. वो भी झटपट उठा और तैयार होने में जुट गया. कपड़े पहनते समय मम्मी आप ने कपड़े ठीक से प्रेस नहीं किए हैं सिकुडऩ अभी भी बाकी है. मम्मी ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दी और कुछ नहीं बोला. तैयार हो के एकदम फस्र्ट क्लास स्टूडेंट बन गया और फिर मम्मी ने उसका माथा चूमा. उसने मम्मी के पैर छूए और राष्ट्रगान गाने और तिरंगा फहराने के लिए घर से स्कूल की तरफ उछलता-कूदता चल दिया...

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