हिन्दी तू गई मेरें मन सें
अब पूछती है क्यों
क्या बताऊं क्यों
तू जानना चाहती क्यों,
तो सुन
जब तुझे बोलता हूँ तो लोग तुच्छ समझते हैं
तेरी प्रतिद्वंदी भाषा को बोलता हूँ तो लोग उच्च समझते हैं
पैदा हुए नवजात शिशु से अब माँ नहीं मदर सुनना चाहते हैं
जो खुद नहीं कर पाए अब उससे करवाना चाहते हैं
तू सिर्फ़ लोगों का पेट भरती है
तू बालीवुड के संवादो में आती है
लोगों को जमीन से आसमान पर पहुँचाती है
उनकों स्टार बनाती है
उनकों करोड़ो रूपये कमवाती है
तू समाचार चैनलों पर चिल्लाई जाती है
समाचार पत्रों पर छापी जाती है
तू अब बाजार में बिकती है
क्योंकि तू विज्ञापन में चलती है
कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य
अब हिन्दी में नही रचे जाते हैं
क्योंकि जो हिन्दी में लिखते हैं
वही असभ्य समझे जाते हैं
बुकर, मैग्ससे, नोबेल की दौड़ से तू बहुत दूर नजर आती है
तू कोई अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार क्यों नहीं जीत पाती है
हर साल तेरें नाम पर विश्व हिन्दी सम्मेलन और पखवाड़े कराए जाते हैं
लाखों नहीं, करोड़ो लुटाए जाते हैं।
हे मेरी हिन्दी तेरी यही कहानी
तेंरी हालत देख मेरी आखों में आता है पानी
इसीलिए हिन्दी तू गई मेरे मन से