Photo- Exclusive (Sachin)
सुबह 6.45 मिनट पर जैसे ही मेट्रो से बाहर निकला तो धूप को घने काले बादलों ने घेर रखा था. हवाएं तेज़ थी. पेड़ो के पत्ते लगातार झूले जा रहे थे... कभी ऊपर तो कभी नीचे। काले घने बादलों में चमकती बिजली कुछ आकृतियां बना कर कुछ कहना चाह रही थी. हवाएं इतनी तेज़ थी कि धूल रूपी पाउडर बिना कुछ कहे ही सबका श्रृंगार किये जा रहा था. बारिशें बरसने को बेताब थी और स्कूल जाने वाले बच्चे इस उम्मीद में बहुत तेजी से पानी बरस जाए तो स्कूल न जाना पड़े.
अप्रैल महीने में दिल्ली के अंदर छाते का इस्तेमाल धूप से बचने के लिए किया जाता है ये माज़रा तो दूसरे शहरों में भी देख चुका था पर शायद पहली बार खुद अप्रैल में बारिश से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल होते देख रहा था. एक माँ अपने बच्चे को बारिश से बचने की जद्दोजहद में थी तो वही एक पिता मेट्रो स्टेशन के नीचे अपनी स्कूटर लिए खड़ा बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा था.
बारिश थमी होगी तो निश्चित ही वो अपनी मंज़िल तक पहुंच गए होंगे। पर हम अपने रूम तक पहुँचते-पहुँचते वो समय याद करने की कोशिश में लग गए कि अपनी ज़िंदगी के जिनते साल होशो हवाश में बिताएं हैं क्या उस दौरान कभी बारिश का दौर अप्रैल महीने में आया था. लखनऊ और दिल्ली में बिताएं अपनी ज़िंदगी के सालों में ऐसा पहली बार हो रहा था.
यही पर दिमाग कहने लगा कि सब कुछ ठीक नहीं हो रहा है. क्या ये पहले से हम सभी के लिए एक चेतावनी हैं? बेमौसम बरसात का आना. प्रकृति का एक इशारा तो नहीं। मौसम के इस रवैये को देख कर बेचैन हूँ और डर भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है.
चेतावनी तो हम सभी को मिल चुकी है. क्या साल 2014 हम सभी का खूब इम्तिहान लेना चाहता है? और इम्तिहान किस रूप में लिया जायेगा, ये आने वाला समय बखूबी बता देगा।