मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

आप, हम, मैं और तुम...

Photo-(Google)

कल रात भर नींद नहीं आ रही थी. बार-बार चार लोग आते परेशान करते और चले जाते। कभी पहला इधर से कुछ कहता तो दूसरा अपनी तरफ बुलाने लगता। दूसरे से फुरसत मिलती नहीं तीसरा आकर अपनी आखें दिखाने लगता। तीसरे से मिलने के बाद चौथे की तरफ मिलने जाने से भी डर सा लगने लगा था कि पता नहीं अब ये कितनी गालियां देगा। रात भर चारों बारी-बारी से आते और मज़े लेकर चले जाते।

चारों एक साथ बोले कितनी घटिया पॉलिटिक्स हो रही है तुम्हारे समय में.… कुछ करते क्यों नही तुम?
 
हमने उन चारों से पूछा कि आखिर तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? 

तो चारों हसने लगे और बोले कि मासूम तो ऐसे बनते, जैसे कोई छोटा बच्चा हो. भाई बेवकूफ किसे बना रहे हो.

हमने कहा देखो यार नींद लग रही है और सुबह जल्दी उठना भी है. जो कुछ कहना है साफ़-साफ़ कहो और जल्दी कहो.वरना हमने सोने दो.

हमारा इतना कहना था कि तीनों को पीछे करते हुए 'आप' सामने आ गया. आप ने कहा बड़ी तमीज़ से कहा भाई हमारा नाम लोगों ने क्यों पॉलिटिक्स में खींच लिया। आख़िर हमने लोगों का क्या बिगाड़ा था. हमारा पॉलिटिक्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है. लखनऊ के रहने वाले हैं. लोग बड़ी शराफ़त से हमारा नाम लेते हैं. एक-दूसरे को इज्ज़त देने में. अपने से बड़ों को और छोटों को भी प्यार से आप ही बुलाते हैं. ये ज़िंदगी शॉर्टकट जीने वालों ने जीना ही मुहाल कर दिया है. राजनीतिक पार्टी का नाम जोड़ दिया हमारे साथ और अब हैशटैग कर करके परेशान कर रहे हैं. उन सब को बताइए न कि हम लखनऊ वाले आप से राजनीतिक पार्टी का कोई लेना देना नहीं है. और अपने नाम का मिसयूज होते हम नहीं देख सकते हैं. बता दीजिये उन सभी को लखनऊ में हाई कोर्ट है, यहीं पर मानहानि की अर्ज़ी दाखिल कर देंगे।

आप की बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था 'हम'. आप ने जैसे ही अपनी बात को ख़त्म किया। हम ने तुरंत कहा कि देश राजनीति में अब मुददे नहीं हैं तुम लोगों के पास...कितनी घटिया किस्म कि राजनीति कर रहे हो. कोई अक्ल है कि नहीं। अब मैं, तुम और हम मुद्दे हो गए हैं. उसको लेकर खींच तान करने लगे हो. जब ये सब तुम्हारे लिए राजनीति के मुद्दे होंगे तो तुम्हारी राजनीति का क्या लेवल होगा यार. कुछ तो शर्म करो. ऐसा कब तक चलेगा। एक बात हम साफ़ कर दे रहे हैं अगर दोबारा 'हम' को राजनीति जबरदस्ती खीचने की कोशिश की हम से बुरा कोई न होगा। हम ने कहा हम भी लखनऊ के रहने वाले हैं. हमारे पूर्वज कहीं और रहते थे.… जो बाद में आकर यही बस गए. हमारी बातों को बड़ी शराफ़त से सुन कर ऊपर तक पहुँचा दीजिएगा कि दोबारा ऐसी गलती न हो.

हम की बातें सुनने के बाद 'मैं' ने  'तुम' को पीछे कर दिया और बोला कि आखिर लोगों को बताना क्या चाहते हो? कौन बुरा और कौन अच्छा, इसका निर्णय करने वाले कौन होते हो? जैसे कि दुनिया में सबसे बुरा हूँ मैं. लोग मुझे खुद यूज़ करते हैं. जब उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं तो मुझे  बदनाम किया जा रहा है. राजनीति करनी है तो मुद्दों की राजनीति करो, जिससे देश का भी कुछ भला हो. दोबारा अब कहने नहीं आएगें बस देंगे। जानते तो होगे ही कि बड़े मुँहफट हैं.

आप, हम और मैं इतना कुछ कह चुके थे कि 'तुम' बस खड़ा-खड़ा मुस्कुरा रहा था. 'तुम' मेरे पास आया और बोला कि देखो यार किसी को इस तरह से बेइज़त नहीं किया जाता है. जो लोग ऐसा करते उन्हें समझाओ। एक दोस्त को जैसे हमेशा तुम कह कर बात करते हैं. आज 'तुम' खुद एक दोस्त बनकर हमें समझा रहा रहा था. 

थोड़ी देर बाद आप, हम, मैं और तुम हमें यूहीं छोड़कर आपस में बातें करते हुए वहां से चले गए. और उनके जाने और इतना कुछ कहने के बीच कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला.