इस को क्या कह सकते हैं जिंदगी में दोस्तों का साथ होना कितना जरूरी होता है. हम सभी अपने काम में बिजी होने के कारण अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते हैं. जिन्होंने हमारे कठिन मोड़ पर हमारा साथ दिया था उन सबको भूल जाते हैं. जिंदगी की उड़ान में दोस्त उन पंखों सरीखे होते हैं जिनके बिना कोई भी उड़ान पूरी नहीं की जा सकती है. शब्द कम पड़ सकते हैं लेकिन उस दोस्ती को किसी भी चीज़ से तौला नहीं जा सकता है...
गुरुवार, 4 जून 2009
बाप अंधरे में बेटा हो गया पॉवर हाउस
लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार डिपार्टमेन्ट का अब भगवान् ही मालिक है।करीब १८ वर्ष पहले शुरू हुआ यह विभाग अपने हाल पर रो रहा है। आज जिस डिपार्टमेन्ट को पूरे देश भर में अपना परचम फैलाना चाहिए, आज वही विभाग काफ़ी निचले निर्णय ले रहा है। सन २००५ में शुरू हुआ बी जे म सी कौर्से रोक दिया गया है । बचेलोर इन जौर्नाल्सिम एंड मॉस कम्युनिकेशन कौर्से आज भारत देश में अधिकतर यूनिवर्सिटी शुरू कर रही है ऐसे समय में डिपार्टमेन्ट ऑफ़ जौर्नालिस्म एंड मॉस कम्युनिकेशन लखनऊ यूनिवर्सिटी का यह फ़ैसला छात्रों के भविष्य से साफ़ साफ़ मजाक जान पड़ता है। अगर विभाग कहता है की उसके पास प्रोफ़ेसर, रीडर और स्पेसिअलिस्ट नही हैं, तोह यह पुरी तरह से बेमानी होगी। क्योकि जब विभाग ने २००५ में इस कौर्से को शुरू किया तब डिपार्टमेन्ट के पास सिर्फ़ एक परमानेंट फेकल्टी थी। जो की डॉ रमेश चंद्र त्रिपाठी जी थे। बाकी सब गेस्ट फेकल्टी थे। अब डिपार्टमेन्ट में डॉ मुकुल श्रीवास्तव के रूप में एक अन्य परमानेंट फेकल्टी भी विभाग में है। आख़िर क्यो यह कौर्से बंद किया गया इसका कोई जवाब अभी तक नही मिल पाया है। जबकि गोमती नगर में माडर्न कॉलेज इस बार भी बीजेमसी में दाखिले लेगा। यह कॉलेज सिर्फ़ लड़कियों के लिए है और सिर्फ़ उन्हें ही दाखिला मिल पायेगा। भविष्य में लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में भी सिर्फ़ माडर्न कॉलेज की लड़किया ही पढ़ पायेगी, क्योकि यहाँ मेरिट पर दाखिला होता है और माडर्न कॉलेज की लड़कियों के परसेंटेज भी ७० से ७८ तक होते है। यह कैसा नियम कानून है की जिस बाप ने बेटे को पैदा किया आज और पाला पोषा आज उस बाप की वाट लग गई है। पत्रकारिता विभाग में जिस तरह की राजनीती हो रही है , उससे एक तरफ़ जो छात्र पत्रकारिता में अपना भविष्य सर्च कर रहे थे , आज वोह लोग इस दोड़ से तरह अलग जान पड़ते है। दूसरी तरफ़ छोटे सहरो में किस तरह की पत्रकारिता होती होगी, उसका अंदाजा इससे ही लग जाता है। एक तरफ़ छात्र और छात्रा की बराबरी की वकालत की जाती है और दूसरी तरफ़ छात्रों को शूली पर लटकाने की तयारी की जा रही है। जो लोग छात्रों के भविष्य से खेल रहे हैं उन्हें जवाब देना होगा। और अब समय आ गया है की लखनऊ यूनिवर्सिटी अपना स्टैण्डर्ड भी चेक कर ले , क्योकि जिस कौर्से को वह पढ़ा रहे है वोह काफी पुराना हो गया है, अब बारी हैं कौर्से को अपडेट एंड नया करने की।
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5 टिप्पणियां:
hi sachin..........
tumne bilkul sahi kaha hai yaar kahan tak hame is dept ko aage le jana chahiye ye ulta peeche ki ore ja raha hai bahut dukh ki baat hai aur zara un baccho ki to socho jo bechare 2011 me paas out ho k nikleinge...kya bataenge ki hum BJMC kar k aaein hain jo ab band ho chuka hai....sach mein sharm ki baat hai....
सचिन
आपका ब्लॉग आपकी तरह काफी खूबसूरत है कृपया मेरे ब्लॉग से अपने ब्लॉग को जोड़ दें जिससे आप जो कुछ लिखेंगे वो मुझे पता पड़ता रहेगा और कमेन्ट देने में आसानी रहेगी आपने जो कुछ लिखा है अब उस पर आता हूँ .पत्रकारिता विभाग में मुझे नहीं लगता की कोई राजनीति हो रही है एक तरफ छात्र गुणवत्ता शिक्षा का रोना रोते हैं और कोसते हैं कि यहाँ कुछ नहीं होता यही छात्र निजी संस्थानों में लाखों में फीस दे कर बेवकूफ बन कर खुश रहते हैं (कम से कम उत्तर प्रदेश में ) आप सब ने जितने वृतचित्र देखे विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया मैं दावे से कह सकता हूँ कि उतना और किसी संस्थान ने नहीं किया होगा और शिक्षकों का जितना सहयोग मिला और मिलता रहेगा (गालियाँ जो हमें अक्सर मिलती हैं ) क्योंकि हम अभी थके नहीं हम वर्तमान परिस्थितियों से निराश जरूर हैं लेकिन हताश नहीं हम वापसी करेंगे हर शिक्षक की सीमायें होती हैं लेकिन जब आप सब साथ होते हैं तो मैं सारी सीमायें तोड़ कर आप सब के साथ होता हूँ .
मैं आपकी भावनाएं समझ सकता हूँ लेकिन ये वक्त कोरी भावकुता का नहीं ये आप ही लोग मुझे अक्सर घेर लिया करते थे सर यहाँ ये नहीं यहाँ वो नहीं है और न जाने क्या क्या फिर सिस्टम अपने हिसाब से चलता है हम एक दिन में क्रांति करके इसे बदल नहीं सकते हाँ बेहतर बनाने की कोशिश कर सकते हैं और ये काम सिस्टम में रह कर करना थोडा मुश्किल होता है .शेष पुरानी बातें हैं जो मैं हमेशा आप लोगों से कहता रहता हूँ धीरज रखो न दुनिया इतनी बुरी है कि हर बात पर शिकायत की जाए और न दुनिया के लोग परिवर्तन हमेशा प्रॉब्लम लाता है ये हमारे उप्पर है कि हम उनसे सीख कर आगे बढ़ते हैं ये सिर्फ शिकायत कर दुनिया को और बदतर बनाते हैं
चलते चलते आपकी हालिया सफलता नुक्कड़ नाटक इसी विभाग की देन है
शुभकामनाओं सहित
jo mukul sir ne kaha vo bhi apni jagah bilkul sahi hai but over all dept par asar zarood padega...but lets hope for the best and worry not dear we all will bring laurels to this dept and by that we can take it to the new heights of success but only with the help of our cool mukul sir ;)
बेटा सचिन अगर मैं भी तुम्हारी जगह होता तो कुछ ऐसे ही विचार होते पर शायद मैं कुछ अधिक समय तक यहाँ रहा हूँ इसलिए इतना समझता हूँ की हमारे विश्वविद्यालय में सिर्फ नए कोर्स चलाये जाते हैं. उनके सञ्चालन के लए ज़रूरी संसाधन नहीं उपलब्ध होते.इसलिए हमें इस कोर्स के बंद होने की सही वजह को भी सामने लाना होगा ताकि दर्द की सही दावा खोजी जा सके. आशा करते हैं की अब जो कोर्स बचे हैं वो अधिक कार्यकुशलता से संचालत होंगे. फिर इस आग को हवा देते रहो उजले दन ज़रूर आयेंगे
haan sachin tum ne ye bahut acha vishya ujagar kiya hai.
lu m ye coure ban hona vaki bahut badi samsya hai, priya ne bilkul sahi kaha ki,jo student lu se ye coure karke aye hai,vo to yahi kahege ki hum ye coure kiya tha per ab ye band ho gaya hai.
pvt. colleage ye coure karate to jaror hai per fees itni ki aam privar iske liye saksam nahi ho pate,jo university bade hai ab vahi es coure ko band kar rahi hai,student ab kya aur kha karege....???
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