बुधवार, 10 दिसंबर 2014

लिखना उतना आसान नहीं होता है जितना बोलना


अच्छा क्या है और बुरा क्या है वो  फैसला हम अपने अनुभवों के आधार पर ही करते हैं. @THE CARVAN में Krishan Kaushik की कैपिटल रिपोर्टर नाम से लिखे गए रिपोर्ताज को पढ़ने के बाद लगता है कि लिखना उतना आसान नहीं होता है जितना बोलना। खासकर ऐसा कुछ लिखना जिसको मिटाया न सके. कृष्ण कौशिक ने अपनी 18 पेज की रिपोर्ट में वो सारी बातें लिख डाली हैं जो शायद आप शेखर गुप्ता के  बारे में जानना चाहते थे या फिर जानते थे पर किसी से कह नही रहे थे.

शेखर गुप्ता कोई एक दिन में नहीं बन जाता है. उसके पीछे कई वर्षों की कई तरह की मेहनत छुपी होती है. आप उसको सही भी कह सकते हैं और गलत.

इस रिपोर्ट की खासियत ये हैं की कई बार शेखर गुप्ता के किये कामों से सहमत हो सकते हैं तो दूसरी तरफ उनकी आलोचना करने के मौके भी आप मिल जाएगें।

हमें नहीं पता की कृष्ण कौशिक को रिपोर्ताज लिखने में कितने दिन लगे. पर  इतनी बैलेंस स्टोरी कोई अच्छा जर्नलिस्ट ही लिख सकता है.

खासकर भारतीय भाषाओं में काम करने वाले यंग जर्नलिस्ट ये रिपोर्ट जरूर पढ़े. साथ ही ये भी सोचें की उनकी सैलरी कितनी है.

जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन की पढाई करवाने वाली यूनिवर्सिटी और कॉलेज इस रिपोर्ट के अलावा पूरे इस मीडिया अंक पर चर्चा कर सकते हैं. क्लासरूम में थ्योरी और मॉडल के इतर भी कुछ बातें हो सकती हैं. 

 अगर स्टूडेंट इस टॉपिक पर डिस्कशन करेगें तो यक़ीनन उनके कई भ्रम भी टुटेगें। इससे वो भविष्य में कुछ सही निर्णय ले सकेगें।

75 रुपए के इस अंक में आप रामोजी राव, गवर्नमेंट की तरफ से विज्ञापन पर खर्च और टॉप मीडिया संस्थानों के बढ़ते प्रॉफिट के बारे में जान सकते हैं.

बाकी Hartosh Singh Bal के लिखे रिपोर्ताज पर उनकी ट्विटर पर उनकी आलोचना की जा रही है. आलोचना क्यों की जा रही है इसके लिए आपको ये अंक पढ़ना होगा।