विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी 'भोपाल गैस कांड के घटित होने के तकरीबन २६ साल बाद आठ दोषियों को सजा सुनाई गई है। इस त्रासदी का घटनाक्रम कुछ इस तरह से है :
३ दिसंबर,१९८४- यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के भोपाल स्थित पेस्टीसाइड प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस के रिसाव के कारण लगभग १५ हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और कम से कम पांच लाख लोग इस गैस की चपेट में आए। साथ ही लाखों लोग बीमार पड़ गए। उनकी आने वाली पीढिय़ां भी गैस के हानिकारक असर से बच नहीं पाईं।
४ दिसंबर,१९८४- यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन समेत नौ लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। लेकिन वारेन एंडरसन को २ हजार डॉलर का जुर्माना भरने पर जमानत दे दी गई। वारेन एंडरसन ने जमानत लेते समय भारत लौटने का वादा किया था। इससे जुड़े फौजदारी मामले में १०वां अभियुक्त यूनियन कार्बाइड को बनाया गया, जिस पर सामूहिक नरसंहार का आरोप लगाया गया।
फरवरी, १९८५- भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड से ३.३ अरब डॉलर का मुआवजा पाने के लिए एक अमेरिकी अदालत में दावा ठोंका।
१९८६- अमेरिका जिला अदालत के जज ने भोपाल गैस त्रासदी के सारे मामलों को भारत स्थानांतरित कर दिया।
दिसंबर १९८७- सीबीआई ने वारेन एंडरसन और यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूएसए), यूनियन कार्बाइड (ईस्टर्न) हांगकांग और यूसीआईएल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। एंडरसन और यूसीसी को सामूहिक नरसंहार के मामले में सम्मन भी भेजा गया।
फरवरी,१९८९- भोपाल के सीजेएम ने सम्मन की बार-बार अवेहलना करने के कारण वारेन एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वांरट जारी किया।
फरवरी, १९८९- यूनियन कार्बाइड द्वारा ४७ करोड़ डालर की क्षतिपूर्ति भरने संबंधी सौदा भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच अदालत के बाहर हुआ।
फरवरी-मार्च,१९८९- इस समझौते को गैर वाजिब करते देते हुए भारी जनविरोध हुआ। इसके साथ ही भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति समेत कई संगठनों ने इस समझौते के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ढेर सारी याचिकाएं दाखिल कीं।
१९९२- सरकार ने ४७ करोड़ डालर के मुआवजे का एक हिस्सा भोपाल गैस पीडि़तों के बीच वितरित किया।
फरवरी,१९९२- अदालत ने कोर्ट के सम्मनों की अवेहलना करने के कारण वारेन एंडरसन को भगोड़ा घोषित किया।
नवंबर,१९९४- अदालत में कई याचिकाएं दाखिल होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड को यूसीआईएल में अपना हिस्सा क ोलकाता स्थित मैकलियॉड रसेल (इंडिया) लिमिटेड को बेचने की अनुमति दे दी।
सितंबर,१९९६- सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के भारतीय अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को थोड़ा कम कर दिया। नरसंहार के लिए मुख्यत: यूनियन कार्बाइड कॉर्पाेरेशन (यूसीसी) को जिम्मेदार माने जाने के कारण ही ये आरोप कम किए गए। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की बहुमत हिस्स्ेदारी उस समय यूसीसी के पास ही थी।
अगस्त,१९९९- यूनियन कार्बाइड ने अमेरिका की डो केमिकल्स में विलय की घोषणा की।
नवंबर,१९९९- अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस ने यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के आसपास जांच में पाया कि वहां १२ वाष्पशील आर्गेनिक केमिकल्स और मरकरी की मात्रा अपेक्षा से ६० लाख गुना तक अधिक है।
नवंबर,१९९९- यूनियन कार्बाइड और इसके पूर्व सीईओ के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उल्लघंन, पर्यावरण कानून, और अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल लॉ के अंतर्गत भोपाल गैस त्रासदी के भुक्तभोगी व बचे हुए लोगों ने न्यूयार्क के फेडरल कोर्ट पर याचिका दाखिल की7
फरवरी,२००१- यूनियन कार्बाइड ने भारत में यूसीआईएल की देनदारियों की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया।
जून,२००२- भोपाल गैस त्रासदी के भुक्तभोगियों ने भारत सरकार के खिलाफ तब प्रदर्शन किया जब उन्हें पता चला कि सरकार एंडरसन के खिलाफ लगे आरोपों को वापस लेने पर विचार कर रही है।
अगस्त,२००२- भारतीय अदालत ने एंडरसन के खिलाफ लगाए गए सामूहिक नरसंहार के आरोपों को बरकरार रखा। भारतीय अदालत ने एंडरसन के प्रत्यर्पण की मांग की ताकि उसके खिलाफ सुनवाई हो सके। इस बीच, एक ब्रिटिश अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि एंडरसन अमेरिका में ही मौजूद है।
अक्टूबर,२००२-यूसीआईएल फैक्टरी को साफ करने को लेकर एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन किया गया। सामजिक कार्यकताओं का कहना था कि फैक्टरी में अभी भी हजारों टन जहरीला पदार्थ है।
मई, २००३- भारत ने अमेरिका से एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए निवेदन किया।
मार्च,२००४- अमेरिका अदालत ने कहा कि वह डो केमिकल्स को भारत की जमीन से जहरीला केमिकल साफ करने के निर्देश दे सकती है अगर इसके लिए भारत सरकार नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे। इसके बाद भारत सरकार ने सर्टिफि केट अमेरिका भेजा।
जून,२००४-अमेरिका ने एंडरसन के भारत प्रत्यर्पण को ये कहकर ठुकरा दिया कि द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि के अनुसार एंडरसन का प्रत्यर्पण संभव नही है।
१९,जुलाई २००४- भारत की उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल बैंक को आदेश दिया कि सन् १९९२ से जमा ४७ करोड़ डालर के आधार पर १५ अरब रुपये का लोगों को मुआवजा वितरित करें।
२५ अक्टूबर,२००४- भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों ने सरकार के मुआवजा न बांटने को लेकर विरोध किया।
२६ अक्टूबर,२००४- सुप्रीम कोर्ट ने ४७ करोड़ डालर का मुआवजा १५ नंवबर तक बांटे जाने की अंतिम तारीख घोषित की।
७ जून, २०१०- कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन केशब महिंद्रा समेत आठ लोगों को भोपाल गैस त्रासदी के लिए दोषी ठहराया ।
अनुवाद- सचिन यादव सन्दर्भ पीटीआई