आप काम अच्छा करें या फिर बुरा। आप का नाम नहीं आप की जाति ही मायने रखती है। ये हम नहीं कह रहे हैं। आज हमने जितने अखबार पढ़े हैं उनमे सिर्फ दो को छोड़ दें तो सभी ने अपनी लीड खबर की हैडिंग में पवन बंसल को सिर्फ बंसल बताने की कोशिश की है। आज कम से कम दिल्ली में आने वाले बीस से अधिक हिंदी और अंग्रेजी अख़बारों में ये हुआ है. मानिए सारे बंसल ही चोर हो गए हो. कुछ अख़बारों में अश्वनी को कुमार से पहचाना गया है। ऐसे में लोग देश में रह रहे अन्य बंसल और कुमार के बारे में क्या राय बनाते है, इसकी जवाबदेही किसकी होगी। लोगों को उनके नाम से ना जानकार जानकर उनकी जात से पहचानना लोगों की आदत बनती जा रही है इस पर बस इतना ही कहना चाहूँगा किसी के कर्म को उसके नाम से पहचाना जाए न की जात से।
इस को क्या कह सकते हैं जिंदगी में दोस्तों का साथ होना कितना जरूरी होता है. हम सभी अपने काम में बिजी होने के कारण अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते हैं. जिन्होंने हमारे कठिन मोड़ पर हमारा साथ दिया था उन सबको भूल जाते हैं. जिंदगी की उड़ान में दोस्त उन पंखों सरीखे होते हैं जिनके बिना कोई भी उड़ान पूरी नहीं की जा सकती है. शब्द कम पड़ सकते हैं लेकिन उस दोस्ती को किसी भी चीज़ से तौला नहीं जा सकता है...
शनिवार, 11 मई 2013
जाति न पूछो अपराधी की
Photo-Courtesy(TOI)
आप काम अच्छा करें या फिर बुरा। आप का नाम नहीं आप की जाति ही मायने रखती है। ये हम नहीं कह रहे हैं। आज हमने जितने अखबार पढ़े हैं उनमे सिर्फ दो को छोड़ दें तो सभी ने अपनी लीड खबर की हैडिंग में पवन बंसल को सिर्फ बंसल बताने की कोशिश की है। आज कम से कम दिल्ली में आने वाले बीस से अधिक हिंदी और अंग्रेजी अख़बारों में ये हुआ है. मानिए सारे बंसल ही चोर हो गए हो. कुछ अख़बारों में अश्वनी को कुमार से पहचाना गया है। ऐसे में लोग देश में रह रहे अन्य बंसल और कुमार के बारे में क्या राय बनाते है, इसकी जवाबदेही किसकी होगी। लोगों को उनके नाम से ना जानकार जानकर उनकी जात से पहचानना लोगों की आदत बनती जा रही है इस पर बस इतना ही कहना चाहूँगा किसी के कर्म को उसके नाम से पहचाना जाए न की जात से।
आप काम अच्छा करें या फिर बुरा। आप का नाम नहीं आप की जाति ही मायने रखती है। ये हम नहीं कह रहे हैं। आज हमने जितने अखबार पढ़े हैं उनमे सिर्फ दो को छोड़ दें तो सभी ने अपनी लीड खबर की हैडिंग में पवन बंसल को सिर्फ बंसल बताने की कोशिश की है। आज कम से कम दिल्ली में आने वाले बीस से अधिक हिंदी और अंग्रेजी अख़बारों में ये हुआ है. मानिए सारे बंसल ही चोर हो गए हो. कुछ अख़बारों में अश्वनी को कुमार से पहचाना गया है। ऐसे में लोग देश में रह रहे अन्य बंसल और कुमार के बारे में क्या राय बनाते है, इसकी जवाबदेही किसकी होगी। लोगों को उनके नाम से ना जानकार जानकर उनकी जात से पहचानना लोगों की आदत बनती जा रही है इस पर बस इतना ही कहना चाहूँगा किसी के कर्म को उसके नाम से पहचाना जाए न की जात से।