इस को क्या कह सकते हैं जिंदगी में दोस्तों का साथ होना कितना जरूरी होता है. हम सभी अपने काम में बिजी होने के कारण अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते हैं. जिन्होंने हमारे कठिन मोड़ पर हमारा साथ दिया था उन सबको भूल जाते हैं. जिंदगी की उड़ान में दोस्त उन पंखों सरीखे होते हैं जिनके बिना कोई भी उड़ान पूरी नहीं की जा सकती है. शब्द कम पड़ सकते हैं लेकिन उस दोस्ती को किसी भी चीज़ से तौला नहीं जा सकता है...
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
ये आग कब ठंडी पड़ेगी
हर साल हर मौसम के कई रंग देखने को मिलते हैं.पर इस साल दिल्ली में कुछ नया ही रंग देखने को मिल रहा है. और ये रंग है आग की तेज लपटों का थोडा सा नीला और थोडा सा लाल. इस आग के रंगों में बहुतों की रोजी रोटी जल रही है. कई लोगों के आशियाँ उजड़ रहे हैं. आखिर ये आग अपना रंग क्यों दिखा रही है. २ अप्रैल को पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामबिलास पासवान के घर आग लग जाती और गाड़ियाँ खड़े खड़े खाक हो जाती हैं. उसी दिन इन कम टैक्स विभाग में आग लगती है और कई ज़रूरी कागज आग की गर्मी मेंभस्म हो जाते हैं. ये आग अभी ठंडी होने का नाम नही लेती है और फिर ८ अप्रैल को गाजीपुर फलाई ओवर के पास गरीबों की १००० झुग्गियों को निशाना बना लेती है. आग अब हर तरफ दहक रही है और हर किसी को अपनी चपेट में लेने के लिए तैयार है. उसका अगला निशाना बनती हैं नेहरु प्लेस में खड़ी दो बसें. जिनमे अपने आप आग लग जाती है, वही दूसरी और एक आदमी की कार उसकी आखों के सामने जल जाती है. और वो कुछ नही करता, भगवन का शुक्रिया अदा करता है आग तब लगी जब वो कार में नही बैठा था. आग थापर हाउस में भी पहुँचती है. और अब आगे बढ़ते हुए. 9 अप्रैल को तुगलकाबाद के कंटेनर डिपो में करोडो रुपये का नुक्सान कर देती हैं. इसके बाद बारी थी उत्तर पाश्चिम दिल्ली की प्लास्टिक इस्क्रेप मार्केट में आग लग जाती है. ये आग बुझने का नाम नही ले रही. और लोगों की जुबान पर इतना ही भर है की ये आग कब ठंडी पड़ेगी