सचिन स्वतंत्र
मीडिया पर निर्भरता का सिं़द्धात( मीडिया ंिडपेंडेंसी थ्योरी)
यह सिंद्धात इस बात की व्याख्या करता है कि दर्षक,श्रोता और पाठक(आडियंस) किस सीमा तक जनमाध्यमों पर निर्भर रहतें हैं। सन् 1976 में दिए गए इस सिं़द्धात पर बाल रोकी और डिफ्ल्यूर का मानना है कि समाज में जितनी अनिष्चितता होती है लोगों की संदर्भ संरचना उतनी ही कम स्पष्ट होती है। जिसके परिणामस्वरूप आंडियस की माध्यमों पर निर्भरता अधिक होती है।
माध्यम विष्लेषकों का मानना है कि जनमाध्यमों के संदेषों की प्रभावोत्पादकता तब बढ़ जाती है जब वह कई विषिष्ट एवं केन्द्रित सूचना के रूप में कार्य करते हैं। माध्यम जगत में सूचना के जितनें ही कम स्रोत होगें, माध्यमों सें हमारें मस्तिष्क के चिन्तन और दृष्टिकोण को प्रभावित करनें की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी जैसें जिस समय यह सिंद्धात दिया गया था उस भारत में उतनें मीडिया इतनी अ्रगणी भूमिका में नहीं था। जबकि आज एक सूचना को आडियंस तक पहुँचानें के लिए सैकड़ों अलग-अलग जनमाध्यम हैं। साथ ही आडियंस के मस्तिष्क पर विकासात्मक प्रभाव डालने में सदेषों की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है न कि उनकी मात्रा।
माध्यम , आडियंस को प्रभावित करते हैं यह सत्य है । साथ ही यह एक एकतरफा प्रक्रिया(वन वे प्रोसेज) है। माध्यम भी आडियंस की प्रतिक्रिया से प्रभावित होते हैं। संज्ञात्मक संरचना में माध्यमों की भूमिका तथा उस पर पड़नें वाले प्रभावों को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता हैः
अस्पष्टता का समाधान और परिस्थितियों की व्याख्या दृष्टिकोण का निर्माण लोगों की आस्थाओं का विस्तार करना एजेन्डा तय करना मूल्यों का स्पष्टीकरण इसकें अतिरिक्त मीडिया का आडियंस तथा सामाजिक प्रणाली के साथ गहरा रिष्ता रहता है, रोकी और डिफ्ल्यूर के ष्षब्दों में- मीडिया व उनकें श्रोता समाज का एक महत्वपूर्ण न खंडित होने वाला हिस्सा है। सामाजिक सांस्कृतिक परिवेष न केवल मीडिया के संदेषों पर प्रभाव डालता है वरन् मीडिया से श्रोताओं पर पड़नें वाले प्रभाव पर भी असर डालता है।
इस सिंद्धात की मुख्य धारणा यह है कि आडिंयस अपनी जरूरतों व उद्देष्यों की पूर्ति के लिए मीडिया पर निर्भर करते हैं। यह सिंद्वात मीडिया, आडियंस और समाज के बीच एक तीन तरफा सम्बन्ध है।
पहला है सामजिक व्यवस्था में स्थिरता और दूसरा है मीडिया से दिए जानें वालें संदेषों की संख्या व महत्ता।मीडिया के अनेक कार्य हैं, किसी विषेष समूह के लिए इनमें से कुछ ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। किसी माध्यम के प्रति उस समूह की निर्भरता बढ़ जाती है। जैसे कोई एक वर्ग सिर्फ समाचारों के लिए निर्भर है तो दूसरा मनोरंजन के कार्यक्रमों के लिए पर साथ में एक वर्ग ऐसा भी होगा जो सिर्फ विज्ञापन या उनके प्रस्तुतिकरण पर निर्भर होगा। मीडिया पर निर्भरता परिवर्तन की पहली सीढ़ी है। जब सामाजिक परिवर्तन होता है, टकराव ज्यादा होतें हैं। संस्थाओं, विचारों ,रीति-रिवाजों, को किसी प्रकार की चुनौती मिलती है, तब ऐसे समय में सूचना प्राप्ति के लिए लोगों की मीडिया पर निर्भरता और अधिक बढ़ जाती है।
यह सिंद्धात जनसंचार के तीन प्रभावों की चर्चा करता है। ज्ञान संबंधी भावनात्मक और व्यावहारिक। ये प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि श्रोता किस हद तक मीडिया पर निर्भर है। मीडिया स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं। जब ऐसी स्थिति बन जाती है, लोगों की मीडिया पर निर्भरता बढ जाती है।
ऽ पहला प्रभाव मीडिया के संदेषों से स्थिति को स्पष्ट करनें में और श्रोताओं की सोच को एक क्रम देनें में बहुत मदद मिलती है और जब अस्पष्टता कम हो जाती है, तो यह प्रभाव भी कम हो जाता है। ऽ ज्ञान संबंधी दूसरा प्रभाव है दृष्टिकोण निर्माण। चुनाव करनें की क्षमताएं, रवैया बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। ऽ तीसरा प्रभाव है मीडिया का एंजेडा तय करना। लोग मीडिया का चुनाव यह जानने के लिए करते हैं कि कौन से मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। ऽ चैया प्रभाव है लोगों की आस्थाओं का विस्तार करना। सूचना से कई क्षेत्रों जैसे धर्म या राजनीति आदि में विचारों या विष्वासों बढ़ाया जाता है। ऽ पाँचवा प्रभाव है मूल्यों का स्पष्टीकरण। जब मूल्यों में विरोधाभास पैदा होता है तो मीडिया पैदा होता है तो मीडिया इसे दूर करने की कोषिष करते हैं।
इस सिंद्धात का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मीडिया के संदेष लोगों को उस हद तक ही प्रभावित करते हैं जिस हद तक वे मीडिया पर निर्भर करते हैं। दरअसल, संचार अपने हर रूप में समाज को एकजुट रखनें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाज में संबंध रहने, उसकों बढ़ावा दिया है और इसका अर्थ है कि मीडिया कुछ हद तक ष्षक्तिषाली है। जैसा कि लोग समझते हैं।
इस प्रकार निर्भरता का सिंद्धात एक मुख्य सिंद्धात है जो व्यक्तिगत विभिन्नताओं और मीडिया के प्रभावों की चर्चा करता है। इस सिंद्धात की मुख्य कमी यह है कि यह समाज और संस्कृति पर मीडिया के नकारात्मक प्रभावों की अनदेखी करता है। यह मीडिया के सकारात्मक प्रभावों की ही चर्चा करता है। मीडिया पर निर्भरता कैसे एक आदत बन जाती है, इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं, जैसे आज भी व्यक्ति मौसम का हाल जानने के लिए मीडिया पर निर्भर रहता है जबकि मौसम का हाल मीडिया को समाज से ही पता चलता है। उसी तरह व्यापार संबंधी खबरों के लिए लोग मीडिया के विभिन्न माध्यमों पर निर्भर रहते हैं क्योंकि सभी प्रकार की व्यापर से संम्बंधित खबरें व्यक्ति अपनें स्तर पर प्राप्त नहीं कर सकता। दिल्ली में बैठे व्यक्ति को मुंबई ष्षेयर बाजार में घटनें वाली मीडिया से ही पता चलती है। अगर वह मीडिया पर निर्भर नहीं रहेगा तों उसें यह खबर प्राप्त करनें के लिए मुम्बई तक जाना होगा।
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