इस को क्या कह सकते हैं जिंदगी में दोस्तों का साथ होना कितना जरूरी होता है. हम सभी अपने काम में बिजी होने के कारण अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते हैं. जिन्होंने हमारे कठिन मोड़ पर हमारा साथ दिया था उन सबको भूल जाते हैं. जिंदगी की उड़ान में दोस्त उन पंखों सरीखे होते हैं जिनके बिना कोई भी उड़ान पूरी नहीं की जा सकती है. शब्द कम पड़ सकते हैं लेकिन उस दोस्ती को किसी भी चीज़ से तौला नहीं जा सकता है...
रविवार, 2 नवंबर 2008
तब मनसे शुरू करेगा हिन्दी भाषा सिखाने के सेंटर
हम नपुंसक की तरह हगामा करना ही जानते हैं। जब कोई बात हो जाती हैं तब उस पर बवाल करना शुरू कर देते हैं। पूरा देश अलगाववाद का दंश भोग रहा हैं और हम अब भी सिर्फ़ राजनीति ही कर रहे हैं। मनसे की सोच ग़लत हैं या फिर उत्तर भारतीय इस बात को सोचने की ही नही बल्कि उन सभी मराठी युवा वर्ग से बात करने की जरूरत हैं की वह क्या सोचता हैं। अगर सिर्फ़ मार पीट कर ही यह मसला हल हो जाएगा यह मनसे की सोच हैं तब वह कभी भी एक अच्छे राजनेता नही पैदा कर पायेगी। उत्तर परदेश और बिहार के लोग मेहनती होते हैं और समय आने पर अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर देते हैं। अगर सिर्फ़ मारपीट कर किसी samasya का हल निकाला जा सकता तब आज किसी कानून की जरूरत न पड़ती। अगर मराठी समाज को उत्तर भारतीयों से निराशा हैं तब वह एक बड़ी तादाद में अपना विरोध दर्ज करते लेकिन आज तक कभी भी ऐसा नही हुवा हैं। हमे गर्व हैं की हमारी हिन्दी भाषा की वजह से मुंबई नगरी को लाखो करोरो रुपय का फायदा होता हैं। उनको सोचना होगा की अगर सभी उत्तर भारतीय मुंबई नगरी को छोड़ कर वापस आ गए तब क्या होगा? सीधा सा जवाब हैं तब मनसे जैसे संगठन ही मुंबई नगरी में हिन्दी सिखाने के सेंटर शुरू करेगा .
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