खुश हूँ कि तुम चले गए
ऐसी दुनिया से
जहाँ मांस के लोथड़े भटकते फिरते हैं
पर दुखी हूँ इस बात पर
कि औरों की तरह तुमने भी नहीं निभाया वायदा
कुछ बातें जो पूरी न हो सकी
कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गए
कुछ कलम रुक सी गई
कुछ आवाज़ें दब सी गई
कुछ रास्ते कही भटक से गए
कुछ मिलने वाले जवाब जो सवाल बन कर ही रह गए
तसल्ली देने के लिए ही थोड़ा सा रुक जाते
आखिर क्या थी जल्दी
एक अदद उम्मीद भी चली गई
जैसे चला जाता है कोई साथी
फिर लौट कर वापस न आने को.
श्र्द्धांजलि Vinod Mehta (1941-2015)