पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में किस राजनीतिक पार्टी की सरकार बनेगी, इसका फैसला तो 8 दिसंबर, 2013 दिन रविवार ही करेगा। सभी पांच राज्यों में दिल्ली अकेला ऐसा केंद्र शासित प्रदेश है, जहां पर गठबंधन सरकार बनने के रूझान वोटिंग से पहले ही आने लगे हैं।
दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों में जहां एक तरफ एंटी इनकबेंसी का फायदा लेने के लिए भारतीय जनता पार्टी तैयार है। वहीं भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे मुद्दे कांग्रेस के सत्ता से बाहर जाने का रास्ता तैयार कर चुके हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी एक नए विकल्प के रूप में लोगों के सामने उभर कर आया है। पर वोटिंग के दिन वोट देते समय भी यह विकल्प दिल्ली की जनता के दिमाग में था। यह बात कुछ दिनों में ही साफ हो जाएगी।
देश के पूर्व गृहसचिव आर के सिंह का एक बयान आया था कि दिल्ली सबसे ज्यादा भ्रष्ट शहर है। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। इस शहर में बच्चे के पैदा होने से और एक बुजुर्ग के मरने के दौरान जो समय बीतता है वो इतना भ्रष्टाचारी होता है कि शायद दिल्ली के बाशिंदों ने भी भ्रष्टाचार को अपनी जिदंगी का एक अहम हिस्सा मान लिया है।
स्कूलों में बच्चों के एडमिशन से लेकर, बिजली के बिलों तक, बिल्डिंगों की बढ़ती ऊंचाई से लेकर साफ न मिलने वाले पानी तक में भ्रष्टाचार है। लोगों के लिए अब उनकी जिदंगी का एक हिस्सा बन गया है। एक बहुत बड़ी संख्या में एक ऐसा भ्रष्टाचारी वर्ग है जो नहीं चाहता है कि भ्रष्टाचार खत्म हो। वो चाहता है कि वो भ्रष्टाचार का आस्तित्व बना रहे। भ्रष्टाचार के चलते ही वो एक अलग अपराध की दुनिया को बनाते हैं। जहां मंजिल तक पहुंचने के लिए कई शॉर्टकट रास्ते होते हैं। पर मंजिल तक पहुंच ही जाओगे इसकी कोई गारंटी नहीं होती है।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ऐसे लोगों के वोट सबसे कम मिलने की उम्मीद है। क्योंकि वो जानते हैं कि अगर ये सत्ता में आए और एक सख्त लोकपाल आ गया तो हम सभी नप जाएंगे।
वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो अपने बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना चाहता है। पर ढीली सरकार होने के चलते कानून होने के बाद भी बच्चों का एडमिशन नहीं हो पाता है। उस गरीब के पास अपने बच्चों को कांवेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए देने वाला लाखों रूपए का डोनेशन भी नहीं होता है। एक बुजुर्ग ऐसे भी हैं जो कानून होने के बाद भी निजी अस्पतालों की मनमानियों के सामने अपने घुटने टेक देते हैं और किसी अपने का खो देते हैं। शायद ऐसा वर्ग आम आदमी पार्टी को एक नए विकल्प के तौर पर स्वीकार कर सकता है।
एक पढ़ा लिखा वर्ग भी आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा है। इस वर्ग में आईआईटी, आईआईएम, जेएनयू, कॉरपोरेट जगत के लोग शामिल हैं। पर असल में यह वर्ग दिल्ली का ओरिजनल वोटर नहीं है। सभी अपने जख्मों को भरने के लिए आम आदमी पार्टी जैसी दवा का सहारा ले रहे हैं। शायद इस दवा से उनकी कोई पीड़ा कम हो जाए।
पर आम आदमी पार्टी को पसंद करते हुए भी लाखों की संख्या में लोग उसे वोट नहीं दे पाएंगे। क्योंकि इस आबादी में वो लाखों लोग दिल्ली के मतदाता के रूप में शामिल नहीं है, जो अपने राज्यों को छोड़ यहां रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। या फिर रोजगार कर रहे हैं। बेशक वे इस राज्य की अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं। पर उनके पास वोट देने का अधिकार नहीं है। क्योंकि वो अपने संबंधित राज्य में वोट डालते हैं। अगर यह सभी भी दिल्ली का वोट बैँक होते तो शायद कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर तस्वीर ही बदल जाती है।
दिल्ली शहर का अपना स्वरूप है। इसके पास खुद का कोई भी प्राकृतिक संसाधन नहीं है। जो है वो यमुना जैसा मैला हो गया है। दिल्ली छोटे-छोटे गांवो और मुहल्लों का केंद्र शासित प्रदेश है। दिल्ली सब की है पर दिल्ली का शायद कोई नहीं है। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली जिसकी आबादी 1.94 करोड़ है। इस 1.94 करोड़ लोगों में से अधिकतर लोग यहां रोजगार की तलाश में अपने राज्यों को छोड़कर आए और यहीं के होकर रह गए। दिल्ली में कहीं पंजाब है तो कही बंगाल, कहीं पर छोटा मिजोरम तो कहीं कश्मीर, केरल, बिहार और उत्तर प्रदेश भी। यहां पर हर मुहल्ले में छोटे-छोटे राज्य बस गए हैं। जो अपने फैसले करना चाहते हैं पर कर नहीं पाते हैं। आज भी उनके जरूरी फैसले सबसे पहले उनके परिवार को कितना प्रभावित करेंगे? इस बात को देख कर लिए जाते हैं।
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए अभी ये शुरूआत बस है। उम्मीद करता हूं कि 10-18 सीटों तक का आंकड़ा आम आदमी की जद्द में हो, जिससे कोई भी आम आदमी के हित में लिए गए निर्णयों में आप भी अपनी भूमिका अहम तरह से निभा सकें।
उम्मीद करता हूं जब आज सुबह लोग मतदान करने जाएंगे तो अपने परिवार के मुखिया के निर्णय को अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगे। खुद सोचेंगे और दिल्ली का नया मुख्यमंत्री चुनेंगे। क्योंकि उनके वोट आने वाली दिल्ली की फिजा बदल जाएगी।
Post By-Sachin
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