गुरुवार, 26 नवंबर 2015

प्रथम की बात क्या समझ पाएंगे यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश



माननीय मुख्यमंत्री जी, नमस्ते

                                      मेरा नाम प्रथम है और अभी फिफ्थ क्लास में पढ़ रहा हूं। हम लखनऊ में रहते हैं। हमारे पापा बैग के एक शोरूम मे काम करते हैं। पापा ज्यादा पढ़ नहीं पाए थे तो उन्होंने हमें पढ़ाने में कोई कसर न रह जाए, इसके लिए पूरी कोशिश करनी शुरू कर दी है। पापा की सैलरी कुछ हजार रूपयों में है। पर फिर भी उन्होंने हमें लखनऊ के सिटी मांटेसिरी स्कूल की अलीगंज ब्रांच में एडमिशन दिलवा दिया। हमें नहीं पता था कि स्कूल की फीस कितनी है और हमारे पापा कैसे इतनी फीस दे रहे हैं। हम तो बस पढ़ रहे थे। धीरे-धीरे कुछ साल निकले तो हम आगे की क्लास में पहुंचे। हमें स्कूल में अच्छा लगने लगा और हमारे कई दोस्त भी बन गए।

मैथ्स और आर्ट हमारे पसंदीदा सब्जेक्‍ट हैं। जैसे ही हम थर्ड क्लास में पहुंचे तब तक फीस कई हजार रूपए में पहुंच चुकी थी। इस दौरान हमारी मां ने भी किसी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया जिससे हमारी स्कूल की फीस जमा करने में कोई दिक्कत न आएं। एक समय ऐसा आ गया कि पापा और मम्मी की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा हमारी स्कूल फीस में ही जाने लगा। उसके बाद बाकी खर्चों पर नियंत्रण करना पापा के बस में नहीं रहा। पापा-मम्‍मी स्कूल गए और उन्होंने स्कूल वालों से बात करते हुए कहा कि हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। क्या आप हमारे बच्चे की फीस माफ नहीं कर सकते हैं? स्कूल प्रशासन ने इस बारे में मम्मी-पापा की बिल्कुल न सुनी। और चाहकर भी हम अपनी आगे की पढ़ाई वहां न कर सके।

 स्कूल प्रशासन की एक मैडम का जवाब था कि बच्चे तो हमारे लिए कस्टमर जैसे हैं। मतलब कि सिटी मांटेसिरी स्कूल ने लखनऊ में अपनी एजुकेशन की दुकान खोल रखी है। क्या देश में जो राइट टू एजुकेशन कानून है वो सिर्फ इसलिए है? क्या राइट टू एजुकेशन कानून के तहत हमे वहां पढ़ने का कोई हक नही था? मुख्यमंत्री जी देश में कानून हैं, पर जब उन्हें लागू ही नहीं किया जाता तो वो किस काम के हैं।

जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कहां पढ़ेगे? मुख्यमंत्री जी हम आप से कुछ नहीं मांग रहे हैं। बस अच्छी और सस्ती एजुकेशन मांग रहे हैं। वो भी हमें नहीं मिल पा रही है। आपके भी तो बच्चे हैं, वो भी तो इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं। हमारी विश है कि पढ़कर लिखकर वो भी कुछ अच्छा बन जाएं। क्या आप हमारे लिए विश नहीं नहीं करेंगे कि हम भी पढ़ लिखकर कुछ अच्छा कर सकें। मुख्यमंत्री जी हमारे जैसे बहुत से बच्चे उत्तर प्रदेश में हैं जो पढ़ना चाहते हैं। पर पढ़ नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके घरवालों के पास पैसे नहीं है। क्या आप उनके अभिभावक नहीं बन सकते हैं। 

हमने अपने नाम के आगे अपनी कास्ट आपको नहीं बताई है। उसकी भी एक खास वजह है यह मान लीजिए कि यूपी में हर समाज, वर्ग, जाति, समुदाय और धर्म में पैदा हुआ बच्चा आप से अच्छी और सस्ती एजुकेशन मांग रहा है। उम्मीद है आप हमारी बात समझ पाएंगे और हम जैसे सभी बच्चों को उनका हक दिलवाएंगे।

आपका उत्तरप्रदेश निवासी 
प्रथम

सोमवार, 2 नवंबर 2015

जब पंडित जी आएंगे और वेडिंग लोन का ऑप्‍शन साथ में लाएंगे!


अभी कुछ दिनों पहले एक घटिया फिल्मी प्रोडक्ट बाजार में आया था जिसका नाम था 'शानदार'। ऐसे घटिया फिल्मी प्रोडक्ट जब बाजार में आते हैं तो अपने साथ-साथ उसी किस्म की मार्केटिंग स्ट्रेटजी को भी बाजार में लांच करते हैं। क्योंकि फिल्म में 'शादी' मुख्य किरदार में थी तो संबंधित प्रोडेक्‍ट को ही बाजार में उतारना था। ऐसे में मौका देखते ही टाटा समूह ने लांच कर दिए 'वेडिंग लोन'। अभी तक नौकरी करने वाले व्यक्ति की‌ जिंदगी पर्सनल लोन, कार लोन, होम लोन, एजुकेशन लोन, गोल्ड लोन के बीच कसमसा रही थी कि वेडिंग लोन के विकल्प ने उसकी आंखें ही बाहर निकाल कर रख दीं। 

लोन लेने से जिंदगी भले ही कुछ पलों के लिए आसान हो जाती हो, पर तभी से व्यक्ति किश्तों में मरना शुरू कर देता है। साथ ही उसकी सोच भी उसी के साथ मरती रहती है। भारत में अब शादियां सिर्फ इसलिए नहीं होती हैं कि दो परिवार के लोग चाहते हैं। बल्कि इसलिए भी होती हैं क्योंकि बाजार चाहता है कि शादियां खूब धूमधड़ाके के साथ हों। इवेंट मैनेजमेंट कंपनी, ऑटोमोबाइल, अपैरल, ज्वैलरी जैसी इंडस्ट्री को शादियों में बड़ा बाजार दिखता है।

ऐसे में अगर आपके बच्चों की शादी होने जा रही है तो हो सकता कि किसी चौराहे पर आपको भी कोई व्यक्ति मिल जाए और सबसे सस्ती दरों पर वेडिंग लोन देने का भरोसा दिलाएं। ये प्रोडक्ट मार्केट में आ चुके हैं और आज नहीं तो कल आप भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। 

यह प्रोडक्ट कुछ लोगों को नौकरी दे सकता है। पर आपको भी सावधान रहना होगा कि कही आप इस जाल में फंस तो नहीं रहे हैं। आने वाले समय में आपके घर के निजी पंडित जी जब आपके घर पूजा करवाने आएंगे तो आपके बेटी और बेटे की शादी के लिए वेडिंग लोन का ऑप्‍शन साथ में लाएंगे। कंपनियां पंड़ित जी पर दांव इसलिए भी लगाएंगी क्योंकि आस्‍था के मामले में लोग उनकी बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं। और फिर आखिर बाजार का दौर है, सभी अपना कमीशन देख कर चल रहे हैं तो वो भी देख लेंगे तो इसमें बुरा क्या है?

रोशन करो ख़्वाबों को कुछ इस तरह

रोशन करो ख़्वाबों को कुछ इस तरह, 
हर मंज़िल अपना रास्ता खुद ब खुद बता दे.

Roshan karon khawabon ko kuch is tarah,

Har manzil apna rasta khud ba khud bata dein...‪#‎Ghatiyawriter



Karvachauth Special

Exclusive Photo-Sachin

सुविधा ट्रेन की दुविधा से हमें बाहर निकालिए 'प्रभु'



त्यौहारों के समय हर साल घर जाना अब नसीब नहीं होता है। पर जिस साल सोचिए कि इस साल तो घर पर ही त्यौहार मना लेंगे, उस साल तो यही लगता है कि हमने यह सोच कर ही गलत कर दिया. अभी कुछ दिनों पहले की बात है। एक अखबार में विज्ञापन आया कि त्यौहारों के लिए ‪#‎Indianrailway‬ सुविधा ट्रेन चला रहा है। विज्ञापन देखा तो खुशी हुई कि चलो घर जाने का मौका मिल जाएगा। हम भी खुश हुए और ‪#‎IRCTC‬ की वेबसाइट पर लॉगइन कर दिया। जैसे ही दिल्‍ली से लखनऊ के लिए सुविधा ट्रेन का टिकट बुक कराने के लिए क्लिक किया तो रेलवे पहलवान हो गया और हम हैरान...

आईआरसीटीसी की साइट हमसे बार-बार कह रही, सुविधा ट्रेन से दिल्‍ली से लखनऊ तक जाने के लिए टिकट बुक कराना है तो ढीले कीजिए रूपए 3505। अब रेल मंत्री सुरेश प्रभु से क्या कहें, हम। तो रेल मंत्री महोदय इस तरह से रेलवे को लाभ में लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं आप। बच्चे की जान लेकर ही मानेंगे आप।

बुधवार, 9 सितंबर 2015

चार दिन के लिए, 'खाना' छोड़ दो

पहले वो आराम से कहेगें
चार दिन के लिए, 'खाना' छोड़ दो

फिर कहेगें
चार दिन के लिए, पीना छोड़ दो
चार दिन के लिए, लिखना छोड़ दो
चार दिन के लिए, बोलना छोड़ दो
चार दिन के लिए, देखना छोड़ दो
चार दिन के लिए, सुनना छोड़ दो
चार दिन के लिए, हँसना छोड़ दो
चार दिन के लिए, रोना छोड़ दो
चार दिन के लिए, प्यार करना छोड़ दो
चार दिन के लिए, खुद को महसूस करना छोड़ दो

जब नहीं मानोगे तुम
तो शुरू होगा उनका खेल

वो कहेगें तुम खुद को इंसान मानना ही छोड़ दो
अब सिर्फ चार दिन के लिए नहीं, पूरी जिंदगी भर के लिए के लिए.

मंगलवार, 10 मार्च 2015

कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गए (Vinod Mehta)


खुश हूँ कि तुम चले गए 
ऐसी दुनिया से 
जहाँ मांस के लोथड़े भटकते फिरते हैं 
पर दुखी हूँ इस बात पर 
कि औरों की तरह तुमने भी नहीं निभाया वायदा 
कुछ बातें जो पूरी न हो सकी 
कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गए 
कुछ कलम रुक सी गई  
कुछ आवाज़ें दब सी गई
कुछ रास्ते कही भटक से गए 
कुछ मिलने वाले जवाब जो सवाल बन कर ही रह गए
तसल्ली देने के लिए ही थोड़ा सा रुक जाते 
आखिर क्या थी जल्दी 
एक अदद उम्मीद भी चली गई 
जैसे चला जाता है कोई साथी 
फिर लौट कर वापस न आने को.
श्र्द्धांजलि Vinod Mehta (1941-2015)